Friday, January 24, 2020

रहे चाहत तो ...


जंग के मैदान के बाहर है अफवाह बहुत
कि जंग लरने को मिलते है तनख्वाह बहुत

इक छोटी सी चोंच और उसमें दो दाने
रहे चाहत तो मिल जाते हैं राह बहुत

शेख जी क्या जरूरत है पेशगी की कहें 
आपके  तस्सवुर में  खो जाते हैं गवाह बहुत

तुम जो होते हो तो लोग बदल जाते हैं
तुम जो न हो तो बढ़ जाता है गुनाह बहुत

चाँद खामोश है क्यूँकि है अमावस "नील"
सुबह   होने से पहले रात होती है स्याह बहुत

4 comments:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    26/01/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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