एक खत आने की आँखों में चमक है जी
इत्र के शहर में इस स्याही की महक है जी
तेरा होना तो मेरे कारवाँ में फलक है जी
कितना पा लूँ तुझे , तू तो दूर तक है जी
किसी मासूम बच्चे सा हो जाऊँ तो अच्छा
मेरे लहजों पे दुनिया को खुब शक है जी
मैं उसके सिवा और वो मेरे बगैर है क्या
मैं गुड़ उसके लिये और वो मेरा नमक है जी
बहुत से फूल, पौधे, तितलियो, भंवरों पे अना
तेरे बागों तक आने को पथरीली सड़क है जी
कभी पूजा, कभी सज़दा ,कभी अरदास भी करें
उलझना बाद में कि खुदा पे किसका हक है जी
एक दाने के लिये भी हो तो खुद पे ही यकीं
"नील" जिन्दान के हर पंछी का सबक है जी
इत्र के शहर में इस स्याही की महक है जी
तेरा होना तो मेरे कारवाँ में फलक है जी
कितना पा लूँ तुझे , तू तो दूर तक है जी
किसी मासूम बच्चे सा हो जाऊँ तो अच्छा
मेरे लहजों पे दुनिया को खुब शक है जी
मैं उसके सिवा और वो मेरे बगैर है क्या
मैं गुड़ उसके लिये और वो मेरा नमक है जी
बहुत से फूल, पौधे, तितलियो, भंवरों पे अना
तेरे बागों तक आने को पथरीली सड़क है जी
कभी पूजा, कभी सज़दा ,कभी अरदास भी करें
उलझना बाद में कि खुदा पे किसका हक है जी
एक दाने के लिये भी हो तो खुद पे ही यकीं
"नील" जिन्दान के हर पंछी का सबक है जी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिये आभारी हूँ यशोदा जी
Deleteबहुत सुंदर सृजन
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