Monday, January 13, 2020

खुदा पे किसका हक है

एक खत आने की आँखों में  चमक है जी
इत्र के शहर में  इस स्याही की महक है जी

तेरा होना तो मेरे   कारवाँ  में फलक है जी
कितना पा लूँ तुझे , तू तो दूर तक है  जी

किसी मासूम बच्चे सा हो जाऊँ तो अच्छा
मेरे लहजों पे दुनिया को  खुब  शक है जी

मैं उसके सिवा और वो मेरे  बगैर  है क्या
मैं गुड़   उसके  लिये  और वो मेरा नमक है जी

बहुत से फूल, पौधे, तितलियो, भंवरों पे अना
तेरे  बागों तक आने को पथरीली सड़क है जी

कभी पूजा, कभी सज़दा ,कभी अरदास भी करें
उलझना बाद में कि खुदा पे किसका हक है जी

एक दाने के लिये भी हो  तो खुद पे ही  यकीं
"नील" जिन्दान के  हर पंछी का सबक है जी


3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभारी हूँ यशोदा जी

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  2. बहुत सुंदर सृजन

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