Saturday, January 11, 2020

याद आये आदमी सा

पार जाने की कड़ी सा
बन गया है इक नदी सा

भूल के अक्स मजहबी सा
याद आये आदमी सा

तआ'रुफ़ उसका  दूर से दे
पास बैठे अजनबी सा

रुक गया तो हैसियत क्या
चमचमाती एक घड़ी सा

बात सुनने में है बच्चा
बात बोले पीर जी सा

जो दिया आँगन सँवारे
वो दिया है चाँदनी सा

मुझको देकर तख्त ऐ फाँसी
कर रहा वो खुदखुशी सा

कोई भी अपना ले बेशक़
बे बहर सी शायरी सा

खुद पहल है "नील" भी अब
कह दो तो वो आखिरी सा

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत धन्यवाद यशोदा जी

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१२-०१-२०२०) को "हर खुशी तेरे नाम करते हैं" (चर्चा अंक -३५७८) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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  3. आपका बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. जो दिया आँगन सँवारे
    वो दिया है चाँदनी सा



    बहुत कोमल और सुंदर भावों से भरी रचना

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  6. आप सब का बहुत धन्यवाद

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