पार जाने की कड़ी सा
बन गया है इक नदी सा
भूल के अक्स मजहबी सा
याद आये आदमी सा
तआ'रुफ़ उसका दूर से दे
पास बैठे अजनबी सा
रुक गया तो हैसियत क्या
चमचमाती एक घड़ी सा
बात सुनने में है बच्चा
बात बोले पीर जी सा
जो दिया आँगन सँवारे
वो दिया है चाँदनी सा
मुझको देकर तख्त ऐ फाँसी
कर रहा वो खुदखुशी सा
कोई भी अपना ले बेशक़
बे बहर सी शायरी सा
खुद पहल है "नील" भी अब
कह दो तो वो आखिरी सा
बन गया है इक नदी सा
भूल के अक्स मजहबी सा
याद आये आदमी सा
तआ'रुफ़ उसका दूर से दे
पास बैठे अजनबी सा
रुक गया तो हैसियत क्या
चमचमाती एक घड़ी सा
बात सुनने में है बच्चा
बात बोले पीर जी सा
जो दिया आँगन सँवारे
वो दिया है चाँदनी सा
मुझको देकर तख्त ऐ फाँसी
कर रहा वो खुदखुशी सा
कोई भी अपना ले बेशक़
बे बहर सी शायरी सा
खुद पहल है "नील" भी अब
कह दो तो वो आखिरी सा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद यशोदा जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१२-०१-२०२०) को "हर खुशी तेरे नाम करते हैं" (चर्चा अंक -३५७८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
आपका बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअति सुंदर रचना
ReplyDeleteजो दिया आँगन सँवारे
ReplyDeleteवो दिया है चाँदनी सा
बहुत कोमल और सुंदर भावों से भरी रचना
आप सब का बहुत धन्यवाद
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