सिखा है उसी से हमने ग़ज़लगोई भी ,
बड़ी काम की है उसकी साफगोई भी
फिर कोई पल हमने संजोई भी ,
फिर से कलम स्याही में डुबोई भी
ग़ालिब तेरे अशरार में क्या बात है ,
जो देर तक खो जाये उनमे कोई भी
आज फिर बादल आ कर के गए ,
आज फिर इक बीज हमने बोई भी
आ गया बूढ़ा ,वही प्याला दिखा
खुल गयी है उसकी अब रसोई भी
देखो हिना से तश्वीर कैसी खिल गयी
कर रहा है उसी से अब दिलजोई भी
बोलता है पन्ना पन्ना किताब का,
नील आँखें जागती हैं कि सोई भी
********************
साफगोई :स्पष्टवादिता
ग़ज़लगोई :ग़ज़ल कहने की प्रक्रिया
अशरार :शेर का बहुवचन
दिलजोई: दिलासा देना ,तसल्ली देना ,सान्तवना
बड़ी काम की है उसकी साफगोई भी
फिर कोई पल हमने संजोई भी ,
फिर से कलम स्याही में डुबोई भी
ग़ालिब तेरे अशरार में क्या बात है ,
जो देर तक खो जाये उनमे कोई भी
आज फिर बादल आ कर के गए ,
आज फिर इक बीज हमने बोई भी
आ गया बूढ़ा ,वही प्याला दिखा
खुल गयी है उसकी अब रसोई भी
देखो हिना से तश्वीर कैसी खिल गयी
कर रहा है उसी से अब दिलजोई भी
बोलता है पन्ना पन्ना किताब का,
नील आँखें जागती हैं कि सोई भी
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साफगोई :स्पष्टवादिता
ग़ज़लगोई :ग़ज़ल कहने की प्रक्रिया
अशरार :शेर का बहुवचन
दिलजोई: दिलासा देना ,तसल्ली देना ,सान्तवना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeletemayank da aapka bahut aabhar ,
ReplyDeletecharcha manch me sthan de kar gauravantit karne ka bahut shukriya
saaadar,
sushma ji bahut shukriya aapke hauslahafzaai ka
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
:-)
bahut aabhaar reena ji
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार संजय जी
ReplyDeleteसादर