हम काग़ज़ कलम स्याही के हिसाब कहाँ से देखें
इस दौर में मेरे रब्बा अब किताब कहाँ से देखें
हम जब बोलें कि नदिया ,खेत तालाब कहाँ से देखें
ऊपर वाले कहें ऐसी , इन्कलाब कहाँ से देखें
जब परदे के पीछे है काँटों की खैर-ओ-खिदमत
तो भला भरम वाले हम ,गुलाब कहाँ से देखें
होती है हर दिन अपनी आसमान से बातें
बादल छंटते ही नहीं फिर, आफताब कहाँ से देखें
होता जब बीज का सौदा अब शहर-शहर मेरे यारा ,
होगा फिर फसल-ए -बहारा ये ख्वाब कहाँ से देखें
माफ़ करो अजीजों कि बंदिश ने हमें जकड़ा ,
अब मिलने वाले सारे आदाब कहाँ से देखें
बस छोटा सा सपना है और छोटा सा है दिल,
बोलो ए साहिब फिर इतने अज़ाब कहाँ से देखें
पूछो तो तिनके तिनके ही से बन जाए नशेमन,
सोचो तो नील इसे भी हम पायाब कहाँ से देखें
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