रहती है रेत की चादर बन कर,
आयी है ज़िन्दगी लहर बन कर
किसी पन्ने की एक उमर बन कर
आई है रोशनाई हुनर बन कर
कैसा है मशगला उन साँसों का ,
बाँटते है गीत नामाबर बनकर
जाता है ख्वाब का दिया दे कर,
आता है नूर-ऐ-नज़र बन कर
किसी को भाये हिमालय की हस्ती ,
कोई रहे मील का पत्थर बन कर
किसी को मंजिलों की ख्वाईश है ,
कोई है मशगूल रहबर बन कर !
ईंट ईंट कैसे जुड़ जाते हैं "नील" ,
खड़ा होता है कैसे घर बनकर
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नामाबर :messanger
मशगूल : busy
रहबर:guide
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