Monday, November 26, 2012

जाने किधर गया ,यारों किधर गया


फिर एक साल आज, युहीं गुज़र गया 
और दामन को ,सवालों से भर गया 

ढूंढता रहता हूँ बचपन को गली गली 
जाने किधर गया ,यारों किधर गया 

तिनको को पहले जलाया था शेख ने 
फिर उस चिड़िये का पर क़तर गया 

सब नहीं रहते हमेशा एक गुलशन में 
कोई इधर गया ,तो कोई उधर गया 

आज फिर होती रही अमन की गुफ्तगू 
आज फिर सरहद पे एक जवान मर गया 

जब तक नहीं टूटा था, रहा बाँटते खुशबू 
और टूटकर भी दिल में उतर गया

Friday, November 23, 2012

काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो


ग़ालिब-ओ- मीर हो या फैज़-ओ-फ़राज़ हो 
हर जगह शायरी का तख़्त-ओ-ताज हो 

जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों 
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो 

हो कलम हाथों में और मिटे खंजर 
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !

आज लम्हों को जियो दिलनवाज़ी से 
क्या पता कल वक़्त का कैसा मिज़ाज हो 

अब कोई तर्क-ए-वफ़ा, न करें साहब 
न कोई भी पर्दा हो ,न कोई राज़ हो 

ये आरज़ू थी कि जो कब से नहीं आया 
वो मुखातिब मेरे महफ़िल में आज हो 

वो कहाँ मांगे है सुर साज पूरी ज़िन्दगी 
लेकिन उसके लिए, भी कभी आवाज़ हो 

ए खुदा ,मेरे खुदा ! अब मांगता हूँ ये दुआ 
कि ज़माने से अलग नील का अंदाज़ हो

Tuesday, November 20, 2012

चरागें मयस्सर करने चला था

चरागें मयस्सर करने चला था 
कोई ज़ख्म गहरा भरने चला था 

वो खुद ही खुद संभलने चला था 
सूरज सा वो भी जलने चला था

कुछ यादों की इक राह पर 
वो दूर तक टहलने चला था 

काग़ज़ पर लिख के कोई ग़ज़ल 

वो ज़िन्दगी को पढने चला था

आदत थी कुछ कुछ मेरी तरह
वो मुझको बदलने चला था

खुली आँख से देखा था ख्वाब
और एक हकीकत गढ़ने चला था

कुछ शायराना माहौल था
वो राज़-ए-दिल कहने चला था

थामे कलम की रौशनी
वो वादियों में बिखरने चला था

जो हो जुदा ,सबसे अलग
कुछ ऐसा अब करने चला था

आँखों में था जलता मशाल
और तीरगी से लड़ने चला था

जाने थी कैसी दीवानगी
फिर से मुहब्बत करने चला था

लिख कर नील स्याही से नज़्म
पढ़ कर उन्हें हि ,बहलने चला था

Friday, November 16, 2012

मालूम नहीं है


कब से जल बुझ  रहा हूँ ,मालूम नहीं है 
किस राह पे चल परा  हूँ, मालूम नहीं है 

है किधर आँखों की नींद ,कोई बता दे 
सोया हूँ कि   जागता हूँ, मालूम नहीं है 

मैं नदी  सा एक दिन मेरे अजीजों 
जाने किससे जा मिला हूँ ,मालूम नहीं है 

हर कोई पूछता है मुझसे मेरा वजूद
जाने किसका चेहरा हूँ , मालूम नहीं है  


पूछते हो मुझसे जो मेरा राज़-ए -दिल 
जाने क्या मैं सोचता हूँ,मालूम नहीं है 

मेरी माथे की सिलवटें को न यूँ देखो 
कैसे ग़म को पी गया  हूँ ,मालूम नहीं है 

माँगता  था  खिलौने माँ से  बचपन में 
जाने अब क्या माँगता हूँ ,मालूम नहीं है 






Sunday, November 11, 2012

तलाश


मुझे ज़िन्दगी की है तलाश, दे वक़्त जीने के लिए 
दो बूँद पानी दे मुझे ,नहीं दे जाम पीने के लिए 

इस सफ़र-ए -ज़िन्दगी का है फ़साना बस यही 
कुछ दर्द आँखों के लिए ,कुछ ज़ख्म सीने के लिए 

नाखुदा मिलता नहीं ,कश्ती कहाँ से लाये वो
बस लहर है रहनुमा, यारों सफीने के लिए

हम पुराने ख़त को अब संभाल के रखते हैं "नील"
यही मेरे अहबाब हैं, हिज्र के महीने के लिए
...........................................................
नाखुदा :नाविक
सफीना :तैराक
हिज्र : जुदाई

Sunday, November 4, 2012

खुदा जाने


क्यूँ उगते हुए सूरज को आफताब  कहते  हैं ,
गर दीपक बुझ गया तो क्यूँ   खराब कहते  हैं 

सुकून  मिलता नहीं   मगर फिर भी क्यूँ ,
लोग  अंदाज़े  को  भी  जवाब  कहते  हैं 

बागों  में जब से मिलने लगे हैं हमें  काँटे
काग़ज़ को सेज ,कलम को गुलाब कहते हैं  

गम और  ख़ुशी दोनों  हैं किनारे ज़िन्दगी के 
हम इसे रब का ही वाजिब हिसाब कहते हैं 

न जाने रुखसती पे अंजाम क्या होगा 
जिस ख़ुशी  में मुझसे  वो आदाब कहते हैं 

जब से आये हैं छोड़कर अपना गाँव
हर आने वाले  ख़त को लाजवाब कहते हैं 

चल परा है जाने कैसे सिलसिला यारों 
मेरी खामोशियों को भी किताब कहते हैं 

नील शहरों  का आज बदला हुआ है रंग 
खुदा जाने किसको कामयाब कहते हैं 

Friday, November 2, 2012

रास्ता बदल गया

मंजिल अब भी वहीँ है मगर रास्ता बदल गया 
देखो तूफ़ान आने  पे  कश्ती  कैसे संभल  गया 

तुम उनसे चिन्गाड़ी के  मायने न पूछना कभी
जिनका मकान दंगो की लपट में कल जल गया 

इतना आग न लगाया करना  बीहरों में कभी 
बर्फ का चादर वहां पर्वतों पे देखो पिघल गया

किससे  रखें उम्मीद  अब,किसपे करें  यकीन  
जो  साथ था कल वही जब  आज हमें  छल गया 

पिछले बरस बारिश में क्यूँ  तालाब न बनाया था 
अब हाथ मल रहे हो जब बिन बरसे वो बादल गया 



Thursday, November 1, 2012

ए "नील" उन्हें कभी भुला ना पायेंगे !

मोहब्बत बेहिसाब किया है उन्होंने 
लफ़्ज़ों को किताब किया है उन्होंने !!

प्याला खारिज है और  बादाह नदारद 
कायदे से हिसाब किया है उन्होंने !!

जागना पहले और सोना बाद में 
ये कैसा बर्ताब किया है उन्होंने!! 

बच्चों को खिला कर सुलाने की खातिर 

अपने खून को आब किया है उन्होंने 

जब भी हाल-ए -दिल पुछा है हमने 
हरदम हिजाब किया है उन्होंने !!



शायरी पर अब लोग कहा करते हैं 
कि  तुमको खराब किया है उन्होंने !!

जो भी हो,हम तो मुरझा ही  गए थे 
प्यार से शादाब किया है उन्होंने !!

उनके तसव्वुर से ही चहक उठते हैं 
इस तरह  शबाब किया है उन्होंने !!

ए "नील" उन्हें कभी भुला ना पायेंगे 
एक अदने को नायाब किया है उन्होंने !!









मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...