फिर एक साल आज, युहीं गुज़र गया
और दामन को ,सवालों से भर गया
ढूंढता रहता हूँ बचपन को गली गली
जाने किधर गया ,यारों किधर गया
तिनको को पहले जलाया था शेख ने
फिर उस चिड़िये का पर क़तर गया
सब नहीं रहते हमेशा एक गुलशन में
कोई इधर गया ,तो कोई उधर गया
आज फिर होती रही अमन की गुफ्तगू
आज फिर सरहद पे एक जवान मर गया
जब तक नहीं टूटा था, रहा बाँटते खुशबू
और टूटकर भी दिल में उतर गया