मंजिल अब भी वहीँ है मगर रास्ता बदल गया
देखो तूफ़ान आने पे कश्ती कैसे संभल गया
तुम उनसे चिन्गाड़ी के मायने न पूछना कभी
जिनका मकान दंगो की लपट में कल जल गया
इतना आग न लगाया करना बीहरों में कभी
बर्फ का चादर वहां पर्वतों पे देखो पिघल गया
किससे रखें उम्मीद अब,किसपे करें यकीन
जो साथ था कल वही जब आज हमें छल गया
पिछले बरस बारिश में क्यूँ तालाब न बनाया था
अब हाथ मल रहे हो जब बिन बरसे वो बादल गया
मंजिल अब भी वहीँ है मगर रास्ता बदल गया
ReplyDeleteदेखो तूफ़ान आने पे कश्ती कैसे संभल गया..bhaut khubsurat panktiya....
उम्दा..
ReplyDeleteसुषमा जी आपका बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआभार अमृता जी