चरागें मयस्सर करने चला था
कोई ज़ख्म गहरा भरने चला था
वो खुद ही खुद संभलने चला था
सूरज सा वो भी जलने चला था
कुछ यादों की इक राह पर
वो दूर तक टहलने चला था
काग़ज़ पर लिख के कोई ग़ज़ल
कोई ज़ख्म गहरा भरने चला था
वो खुद ही खुद संभलने चला था
सूरज सा वो भी जलने चला था
कुछ यादों की इक राह पर
वो दूर तक टहलने चला था
काग़ज़ पर लिख के कोई ग़ज़ल
वो ज़िन्दगी को पढने चला था
आदत थी कुछ कुछ मेरी तरह
वो मुझको बदलने चला था
खुली आँख से देखा था ख्वाब
और एक हकीकत गढ़ने चला था
कुछ शायराना माहौल था
वो राज़-ए-दिल कहने चला था
थामे कलम की रौशनी
वो वादियों में बिखरने चला था
जो हो जुदा ,सबसे अलग
कुछ ऐसा अब करने चला था
आँखों में था जलता मशाल
और तीरगी से लड़ने चला था
जाने थी कैसी दीवानगी
फिर से मुहब्बत करने चला था
लिख कर नील स्याही से नज़्म
पढ़ कर उन्हें हि ,बहलने चला था
आदत थी कुछ कुछ मेरी तरह
वो मुझको बदलने चला था
खुली आँख से देखा था ख्वाब
और एक हकीकत गढ़ने चला था
कुछ शायराना माहौल था
वो राज़-ए-दिल कहने चला था
थामे कलम की रौशनी
वो वादियों में बिखरने चला था
जो हो जुदा ,सबसे अलग
कुछ ऐसा अब करने चला था
आँखों में था जलता मशाल
और तीरगी से लड़ने चला था
जाने थी कैसी दीवानगी
फिर से मुहब्बत करने चला था
लिख कर नील स्याही से नज़्म
पढ़ कर उन्हें हि ,बहलने चला था
No comments:
Post a Comment