हर जगह शायरी का तख़्त-ओ-ताज हो
जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो
हो कलम हाथों में और मिटे खंजर
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !
आज लम्हों को जियो दिलनवाज़ी से
क्या पता कल वक़्त का कैसा मिज़ाज हो
अब कोई तर्क-ए-वफ़ा, न करें साहब
न कोई भी पर्दा हो ,न कोई राज़ हो
ये आरज़ू थी कि जो कब से नहीं आया
वो मुखातिब मेरे महफ़िल में आज हो
वो कहाँ मांगे है सुर साज पूरी ज़िन्दगी
लेकिन उसके लिए, भी कभी आवाज़ हो
ए खुदा ,मेरे खुदा ! अब मांगता हूँ ये दुआ
कि ज़माने से अलग नील का अंदाज़ हो
बहुत खूब बहुत खूब
ReplyDeleteजब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों
ReplyDeleteतब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो
kya baat hai dost,aap ki jagal pad kr maza aa gay
bhaut hi acchi...
ReplyDeleteaapka bahut aabhaar sikha ji
ReplyDeletebahut dhanyavaad alok bhai
bahut aabhaar sushma ji