मुझे ज़िन्दगी की है तलाश, दे वक़्त जीने के लिए
दो बूँद पानी दे मुझे ,नहीं दे जाम पीने के लिए
इस सफ़र-ए -ज़िन्दगी का है फ़साना बस यही
कुछ दर्द आँखों के लिए ,कुछ ज़ख्म सीने के लिए
नाखुदा मिलता नहीं ,कश्ती कहाँ से लाये वो
बस लहर है रहनुमा, यारों सफीने के लिए
हम पुराने ख़त को अब संभाल के रखते हैं "नील"
यही मेरे अहबाब हैं, हिज्र के महीने के लिए
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नाखुदा :नाविक
सफीना :तैराक
हिज्र : जुदाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteत्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
बहुत धन्यवाद सुषमा जी , सादर आभार मयंक दा
ReplyDeleteबहुत आभार मदन जी ,
आप सभी लोगों के प्रोत्साहित करते रहने का बहुत आभारी हूँ
इस सफ़र-ए -ज़िन्दगी का है फ़साना बस यही
ReplyDeleteकुछ दर्द आँखों के लिए ,कुछ ज़ख्म सीने के लिए
क्या शेर कहा है आपने. बेहतरीन ग़ज़ल.
आपका बहुत आभार निहार जी
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