कह दिया सादगी से , हमारी कमी ?
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !
आहटें दर पे रोज़ देती हैं
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!
आपका और हमारा वजूद भी है
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!
दिन की हलचल में आन रखते हैं
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!
कोई तो कुछ कहो मुलाज़िम को
बात दर बात पे सरकारी कमी ?
कितनों को चढ़ी नशा ए कमीयाँ ?
पी के फिर बारहा उतारी कमी !
पी के फिर बारहा उतारी कमी !
"नील" यूँ माँगना कि कर न दें
एक दिन बेबस और जुआरी कमी
एक दिन बेबस और जुआरी कमी