Friday, November 29, 2019

कमी


कह दिया सादगी से , हमारी कमी ?
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !

आहटें दर पे रोज़ देती हैं
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!

आपका और हमारा वजूद भी है
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!

दिन की हलचल में आन रखते हैं
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!

कोई तो कुछ कहो  मुलाज़िम को 
बात दर बात पे सरकारी कमी ?

कितनों को चढ़ी नशा ए कमीयाँ ?
पी के फिर बारहा उतारी कमी !

"नील" यूँ माँगना कि कर न दें
एक दिन बेबस और जुआरी कमी 





Tuesday, November 26, 2019

बेसब्र

कितना बेसब्र है , भागा भागा जाता है। 
रखा है पूरा , मगर ले कर आधा जाता है 

ए बच्चे ! न लूट अजनबी गलियों में 

तेरे छत ही से पतंगों का धागा जाता है

सहेज के न रख ए   शेख़ ये जुबानी गोले 

हम सरहद पे हैं यहाँ बारूद दागा जाता है

घूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है 

किसी  आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।

तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में 

खुद के होने का सबूत माँगा जाता है

भेजने वाले को पहचान लेते हैं 
अज़ीज़

जब बेढंग तहरीरों का लिफाफा जाता है

"नील "  आकाश के छतरी के ही सहारे हूँ 

देखना है मगर कब ये कुहासा जाता है 







Monday, November 25, 2019

गहराई

एक टूटे हुए पत्ते ने जमीं पायी है ,
जड़ तक पहुंचा दे ,ये सदा लगायी है !

सादा कागज है मुंतज़िर कि आये गजल
क्या कलम में  हमने भरी रोशनाई है ?

झील में मारकर पत्थर न दिखाओ सागर
झील की सादगी भी हमको रास आयी है !

हर तरफ आईने ,हर आईने में कई चेहरे,
किस चेहरे में जी ने सुकूं पायी है  ?

वो तो है रोशनी जो हो तो है सबकी आन
कभी कह दो उसे पर्वत या कहो राई है !

ठुकराऊँ खुद "नील" की कई गहरी बातें
नीले सागर से ही पायी ये गहराई है !

Monday, November 18, 2019

बादल के पर्दे

कहाँ तक जायें  कि कोई किनारा कहाँ 
चुभती है सुई की घङी ,मझधारा कहाँ 

हम जमीन वाले , आसमान है तेरा 
चमकता  है अब हमारा सितारा कहाँ 

तुम बादल के पर्दे को हटाकर देखो 
कहाँ गिरे बर्फ , बढ़ा है पारा कहाँ 

ये वक्त की लहर है , समँदर सा ज़ीस्त 
लौट के फिर आयेगा दोबारा कहाँ 

बदस्तूर  है ज़ारी एक जंग  अज़ल  से ,
दिल जुबाँ दोनो तुझपे वारा  कहाँ 

क्या है तेरी ख्वाईश कि तुझसे "नील "
कोई जीता किधर ,कोई हारा कहाँ




Friday, November 15, 2019

एक काठ की नाव

जब आयी है मुकाम की घड़ियाँ करीब आज तो
कर काशिशें इक बार फिर भूलो नसीब आज तो

बोलों का ,गीतों का ,एहसासों का इम्तेहान है
बाग में हमने बुलाये   अंदलीब  आज तो

 दिवारों को,मुंडेरों को और दर-ओ-दरवाजों को
जाना की सम्भालता है कोई नीब आज तो

यूँ तो रख रहा था वो रश्क-ओ-रंज बारहा
बन गया है देख लो खुद का रकीब आज तो

लहरों की मार कारवाँ के बोझ से ऊँघा हुआ
एक काठ की नाव पर सोया गरीब आज तो

आखिरी पन्ने से अब पढ़ना शुरू ए "नील" कर
तुझ को लगेगा फलसफा कितना अजीब आज तो

Monday, November 11, 2019

जो कहते हो तुम वो कोई ना कहे

कैसी शगलों में रहते हो डूब जाते हो
नौकाओं को देखो जब भी ऊब जाते हो

पेड़ पुकारे जड़ के लिये , तुम प्रेमी पत्तों के
दर्शन के अभिलाषी  मिलने खुब जाते हो ,

हमने खुद को बदला या तुम मन के ईश्वर
भ्रम में रखते हो बन कर महबूब जाते हो

जो कहते हो तुम वो कोई ना कहे कभी
जब लिख  दूँ वो सब ,कह के मकतूब जाते हो

नील से पहले भी, बाद भी,संग भी हो मौजूद
क्या कहकर महबूबों के महबूब जाते हो ?




Tuesday, November 5, 2019

ये कल्पना भी नहीं!

कल्पनाओं को छान यूँ यथार्थ करूँ,
अपने अंतः करण को कृतार्थ करूँ

कभी बन जाऊं स्वयं कृष्ण अबोधों के लिए,
कभी विस्मय में हूँ तो स्वयं को ही  पार्थ करूँ

तू प्रति क्षण मेरा दर्पण है,मेरे छन्द तुम्ही पर अर्पण हैं,
तू ही  टोके जब स्वार्थ करूँ,तू  कह दे तो परमार्थ करूँ

ये कल्पना भी नहीं की विस्मरण हो,
प्रभु ! ,जो कह दिया ,उसे कैसे चरित्रार्थ करूँ

Sunday, November 3, 2019

मंथन

 सामने  शगल  हो जो  हर  रूप    में   पानी  हो
जिसके  खातिर  अपनी  हर  साँसें  दीवानी  हो 

खिंच  कर  ले  जाते  हो  अब  किस किस  दयार में ?
ऐसा  भी  नहीं  कि  राहें  जानी  पहचानी  हो  !

बार  बार  बदल  रहे  हो  कपड़े ,नहाना  गौण  हआ  ?
देख  लो  कोई  इत्र  भी तुमको शायद अभी  लगानी  हो  !

इस  समँदर  का   मंथन  करूँ तो  बस  मैं  कैसे ?
कोई  शिव ,कोई  वासुकी-मंदार ,कोई  चक्र  पाणी  हो 

सब  रँग  बनाये  हैं   लेकिन एक चित्रकार  नहीं ,
इस  रँग -ए -महफिल  में क्या वाज़िब  निशानी  हो  ?

जगमगाया  हुआ  शहर है घृत तैल के दीपों  से ,
एक   रोटी  ही  सही  किसी  भूखे    को  भी पकानी  हो  ?

ये  कागज़ , कलम  और  स्याही  ,सब से कर दे जुदा हमें ,
ये  शगल  , "नील " और  कोशिशों  की कोई उम्दा ही  कहानी  हो

Saturday, November 2, 2019

झील


किसी  ने  झील  की  गहराई  मापी ,किसी  ने  झील में  पत्थर  मारा ,
कोई  तैराक  था  तो  दी  झपकी ,किसी  ने  खून  बहाकर  मारा

किसी  ने  धूल  की  तिलांजलि  दी  ,कर  दिया  सर  का  आग़ाज़ 
किसी  ने  जोड़  दिया नहरों  से ,उसे  दरिया  बनाकर  मारा

किसी  ने  भेजा  धूप  को  जो  ले  गया  बादल  के  तोहफे ,
किसी  ने  ज़मीं  और  बादल  के , बीच  में  आकर  मारा 

किसी  ने  खोल  दिया नौकाओं  का  एक  अनोखा  सा  शहर,
किसी  ने  सब  ख़त्म  करने  का , एक  आखिरी  मोहर  मारा

"नील " इस  झील के  उस  पार  ही  इसकी  मर्ज़ों  की  दवा  होगी ,
ऐसा  लगता  है   इस  पार तो , वक्त  ने   हर चारागर  मारा


Friday, November 1, 2019

खाली प्याला


हम  बूंदों  से  अपना  खाली  प्याला  भर  लेंगे  ,
अब  साकी  ने  पिलाना  छोर   दिया  है .......

वैसे  भी  मिलावटी  है  आज  शराब  भी  ,
बादलों  से बरसे   आब-ए-हयात को   पिऊंगा  तो  शायद  कुछ  बात  बन  जाए ..

सौदा

बात  करते  रहो  ,उलझते  रहो,नया  आयाम  पैदा  होगा ,
अब  मेरे  और  मेरे खुदा  के  बीच ,बहुत  प्यारा  सा  सौदा  होगा 

रोज  गुस्ताख़ आँखें  साथ बैठेंगी   ,रोज  मुरझायेंगे   लबों  के  फूल 
राहें  में  रब  से  मिला  ,अब  तुमसे , दोस्त  मेरे  ,मसौदा  होगा 

फूल  महकेंगे  मगर खुशबू  की  कोई  ख्वाहिश भी तो  करता  हो ,
हम  तो  बीज  देर  से  लाये ,तू  लगा  दे  कभी ,वो  पौधा  होगा 

कोई  कहता  हैं  कि  ये  मुश्किल  है  , कोई  कहता  है  कि  बहुत  आसाँ 
पर  "नील " ये  भी  कहता कोई ,  जो  भी  होगा  होगा !

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...