जब आयी है मुकाम की घड़ियाँ करीब आज तो
कर काशिशें इक बार फिर भूलो नसीब आज तो
बोलों का ,गीतों का ,एहसासों का इम्तेहान है
बाग में हमने बुलाये अंदलीब आज तो
दिवारों को,मुंडेरों को और दर-ओ-दरवाजों को
जाना की सम्भालता है कोई नीब आज तो
यूँ तो रख रहा था वो रश्क-ओ-रंज बारहा
बन गया है देख लो खुद का रकीब आज तो
लहरों की मार कारवाँ के बोझ से ऊँघा हुआ
एक काठ की नाव पर सोया गरीब आज तो
आखिरी पन्ने से अब पढ़ना शुरू ए "नील" कर
तुझ को लगेगा फलसफा कितना अजीब आज तो
कर काशिशें इक बार फिर भूलो नसीब आज तो
बोलों का ,गीतों का ,एहसासों का इम्तेहान है
बाग में हमने बुलाये अंदलीब आज तो
दिवारों को,मुंडेरों को और दर-ओ-दरवाजों को
जाना की सम्भालता है कोई नीब आज तो
यूँ तो रख रहा था वो रश्क-ओ-रंज बारहा
बन गया है देख लो खुद का रकीब आज तो
लहरों की मार कारवाँ के बोझ से ऊँघा हुआ
एक काठ की नाव पर सोया गरीब आज तो
आखिरी पन्ने से अब पढ़ना शुरू ए "नील" कर
तुझ को लगेगा फलसफा कितना अजीब आज तो
बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद प्रकाश जी
Deleteवाह... बहुत खूब।
ReplyDeleteआखिरी पन्ने से पढ़ना... कमाल।
मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
बहुत धन्यवाद रोहितास जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-11-2019) को "हिस्सा हिन्दुस्तान का, सिंध और पंजाब" (चर्चा अंक- 3522) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत धन्यवाद मयंक दा इस रचना को चर्चा मंच मे स्थान देने हेतु
Deleteशब्द शब्द में पीड़ित मानवता का मर्म ओकरा है आप ने
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय
सादर
बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत धन्यवाद यशोदा जी
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