बादल बरसेंगे ,समन्दर ! ,पानी तुम सम्भालो,
नज़्म कोरी है मुरीदों ,मानी तुम सम्भालो
नज़्म कोरी है मुरीदों ,मानी तुम सम्भालो
खुद में सिमट जाओ या रवानी तुम सम्भालो ,
ये धूप छाँव की मेहेरबानी तुम सम्भालो
ये धूप छाँव की मेहेरबानी तुम सम्भालो
खुद को है जो हासिल क्यूँ दिखा रहा था वो ,
हासील हो गया है, जो बेमानी ,तुम सम्भालो
हासील हो गया है, जो बेमानी ,तुम सम्भालो
आसमां का रंग अब ,देता है ये हौसला
खुद को परखने की ये निशानी ,तुम सम्भालो
खुद को परखने की ये निशानी ,तुम सम्भालो
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