तुम अगर दिल कहोगे, तो बहुत झूठे हो तुम ,
कब हमें मन कहोगे , कब तलक रूठे हो तुम
शाम हो गयी है तो ,दीपक जला लो आप ही ,
साया भी मिल जायेगा ,आस में बैठे हो तुम
जो था मन में समंदर ,हो के बाहर बूँद है
और पूछे बूँद ही कि यार अब कैसे हो तुम
बस यही लम्हा तो दोनों को बराबर कर रहा
किस तरह पाया था मैं,किस तरह खोते हो तुम
ख्वाब में देखा कि आया था लिये एक फैसला
मानने ख़्वाबों में आऊं ,किस जगह सोते हो तुम
मैं सफ़र से किस तरह बाहर करूँ दो बात को,
हर जगह होता हूँ मैं,हर जगह होते हो तुम
मैं गवाही में तुम्हारे मन का टुकरा लाऊँगा
क़्योंकि झूठा था मैं तब ,क्योंकि अब झूठे हो तुम
है सुकून "नील" को ,है दोस्त वो मेरा बड़ा
इक जगह हँसता हूँ मैं,इक जगह हँसते हो तुम
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