है सामने मेरा चेहरा और बात क्या हो ,
सागर से भी गहरा ,और बात क्या हो
भारी है जैसे हो कोई चट्टान सा ,
तेरा दिया सेहरा ,और बात क्या हो
किसको न समझा और किस को समझाये ,
खुद हो गया बहरा ,और बात क्या हो
है इस तरह एक बार फिर दरवाज़े पे
इक उम्र का पहरा ,और बात क्या हो
खुद को मिला रहा था ,पर खुदा नहीं
कुछ देर ही ठहरा ,और बात क्या हो
है शाम ही ,कहता है सूरज चाँद से ,
अब मैं गया तू आ ,और बात क्या हो
अब चाहता है क्यूँ भला , ये "नील " भी ,
हो जाये बेचेहरा ,और बात क्या हो
Aapka aabhaar
ReplyDeleteDhanyvaad aapka
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