हर बात ही उनको एक लगे ,बस एक किनारा ताक रहे ,
जब खुद भी सफर कर लौट हैँ ,क्यूँ हैराँ हैँ आवाक रहे
आईना लेकर जब बैठूं ,खुद में और उलझ जाऊँ ,
कोई बेखुद हो जाए,दूर रहे और पाक रहे
चेहरे से ज़ाहिर हो जाए तो फिर न होगी देर कभी ,
ये स्याही मेरी खुराक रहे ,आपकी भी नाक रहे
badhiyaa likhaa
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2016) को "सुलगता सवेरा-पिघलती शाम" (चर्चा अंक-2332) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Aap sab ka aabhaar
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