कितना बेसब्र है , भागा भागा जाता है।
रखा है पूरा , मगर ले कर आधा जाता है
ए बच्चे ! न लूट अजनबी गलियों में
तेरे छत ही से पतंगों का धागा जाता है
सहेज के न रख ए शेख़ ये जुबानी गोले
हम सरहद पे हैं यहाँ बारूद दागा जाता है
घूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है
किसी आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।
तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में
खुद के होने का सबूत माँगा जाता है
भेजने वाले को पहचान लेते हैं अज़ीज़
जब बेढंग तहरीरों का लिफाफा जाता है
"नील " आकाश के छतरी के ही सहारे हूँ
देखना है मगर कब ये कुहासा जाता है
रखा है पूरा , मगर ले कर आधा जाता है
ए बच्चे ! न लूट अजनबी गलियों में
तेरे छत ही से पतंगों का धागा जाता है
सहेज के न रख ए शेख़ ये जुबानी गोले
हम सरहद पे हैं यहाँ बारूद दागा जाता है
घूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है
किसी आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।
तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में
खुद के होने का सबूत माँगा जाता है
भेजने वाले को पहचान लेते हैं अज़ीज़
जब बेढंग तहरीरों का लिफाफा जाता है
"नील " आकाश के छतरी के ही सहारे हूँ
देखना है मगर कब ये कुहासा जाता है
बेहद शानदार गज़ल आपकी बहुत अच्छा लिखते है आप।
ReplyDeleteजी नीलांश जी एक विनम्र सुझाव है कृपया उर्दू शब्द में नुक्ता का प्रयोग करिये जिससे रचना पूरी तरह शुद्ध हो जायेगी।
सादर।
मैं आपका परामर्श मानूँगा
Deleteआपका धन्यवाद
सादर ,
"तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में
ReplyDeleteखुद के होने का सबूत माँगा जाता है"
वाह!!! बहुत खूब।
आभार प्रकाश जी
Deleteवाह!!लाजवाब !!
ReplyDeleteआभार आपका शुभा जी
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद आपका अनीता जी
Deleteघूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है
ReplyDeleteकिसी आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।
वाह सभी शेर उम्दा और भावपूर्ण रचना नीलांश जी | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई इस प्यारी सी रचना के लिए |
आभार रेणु जी
Deleteबहुत धन्यवाद इस रचना का संकलन करने के लिये रवीन्द्र जी
ReplyDeleteसभी शेर उम्दा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी
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