Tuesday, November 26, 2019

बेसब्र

कितना बेसब्र है , भागा भागा जाता है। 
रखा है पूरा , मगर ले कर आधा जाता है 

ए बच्चे ! न लूट अजनबी गलियों में 

तेरे छत ही से पतंगों का धागा जाता है

सहेज के न रख ए   शेख़ ये जुबानी गोले 

हम सरहद पे हैं यहाँ बारूद दागा जाता है

घूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है 

किसी  आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।

तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में 

खुद के होने का सबूत माँगा जाता है

भेजने वाले को पहचान लेते हैं 
अज़ीज़

जब बेढंग तहरीरों का लिफाफा जाता है

"नील "  आकाश के छतरी के ही सहारे हूँ 

देखना है मगर कब ये कुहासा जाता है 







13 comments:

  1. बेहद शानदार गज़ल आपकी बहुत अच्छा लिखते है आप।

    जी नीलांश जी एक विनम्र सुझाव है कृपया उर्दू शब्द में नुक्ता का प्रयोग करिये जिससे रचना पूरी तरह शुद्ध हो जायेगी।
    सादर।

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    1. मैं आपका परामर्श मानूँगा
      आपका धन्यवाद
      सादर ,

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  2. "तोहफे देने की उसूल है कि अब तोहफे में
    खुद के होने का सबूत माँगा जाता है"

    वाह!!! बहुत खूब।

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  3. वाह !बेहतरीन सृजन
    सादर

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    1. धन्यवाद आपका अनीता जी

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  4. घूंघट की आड़ में दीदार तो रूमानी ही है
    किसी आड़ में ही मतलब भी साधा जाता है।
    वाह सभी शेर उम्दा और भावपूर्ण रचना नीलांश जी | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई इस प्यारी सी रचना के लिए |

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  5. बहुत धन्यवाद इस रचना का संकलन करने के लिये रवीन्द्र जी

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी

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