कह दिया सादगी से , हमारी कमी ?
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !
आहटें दर पे रोज़ देती हैं
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!
आपका और हमारा वजूद भी है
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!
दिन की हलचल में आन रखते हैं
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!
कोई तो कुछ कहो मुलाज़िम को
बात दर बात पे सरकारी कमी ?
कितनों को चढ़ी नशा ए कमीयाँ ?
पी के फिर बारहा उतारी कमी !
पी के फिर बारहा उतारी कमी !
"नील" यूँ माँगना कि कर न दें
एक दिन बेबस और जुआरी कमी
एक दिन बेबस और जुआरी कमी
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-१२ -२०१९ ) को "जानवर तो मूक होता है" (चर्चा अंक ३५३६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका आभारी हूँ इस रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिये
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
श्वेता जी आपका आभारी हूँ रचना का संकलन करने के लिये
Deleteवाह! शानदार।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत लाजवाब शेरो से सजी ...
ReplyDeleteदिली दाद मेरी तरह से ...
आपका धन्यवाद दिगंबर जी
Deleteबहुत लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी
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