Friday, November 29, 2019

कमी


कह दिया सादगी से , हमारी कमी ?
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !

आहटें दर पे रोज़ देती हैं
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!

आपका और हमारा वजूद भी है
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!

दिन की हलचल में आन रखते हैं
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!

कोई तो कुछ कहो  मुलाज़िम को 
बात दर बात पे सरकारी कमी ?

कितनों को चढ़ी नशा ए कमीयाँ ?
पी के फिर बारहा उतारी कमी !

"नील" यूँ माँगना कि कर न दें
एक दिन बेबस और जुआरी कमी 





14 comments:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-१२ -२०१९ ) को "जानवर तो मूक होता है" (चर्चा अंक ३५३६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. आपका आभारी हूँ इस रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिये

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  2.  जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,

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    1. श्वेता जी आपका आभारी हूँ रचना का संकलन करने के लिये

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  3. बहुत लाजवाब शेरो से सजी ...
    दिली दाद मेरी तरह से ...

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    1. आपका धन्यवाद दिगंबर जी

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी

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