इस ज़िन्दगी में अब कोई जुस्तजू न रही ,
मैं ही बदल गया या तू तू न रही ..
जिसने की थी हिमायत उसकी सादगी की
उस इंसान की इस शहर में आबरू न रही ...
रस्ते सारे वहीँ रहे मंजिलें भी वहीँ
सफ़र करने की ही कोई अब आरज़ू न रही ...
कोई आदतन ग़म के पैमाने नहीं भरता ..
मगर क्या करें की शराब में वो खुशबू न रही
मैं ही बदल गया या तू तू न रही ..
जिसने की थी हिमायत उसकी सादगी की
उस इंसान की इस शहर में आबरू न रही ...
रस्ते सारे वहीँ रहे मंजिलें भी वहीँ
सफ़र करने की ही कोई अब आरज़ू न रही ...
कोई आदतन ग़म के पैमाने नहीं भरता ..
मगर क्या करें की शराब में वो खुशबू न रही
sundar gazal....
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