जब कभी कोई दुआ तेरी पायी तो ,बस खुदा देखा
जब कभी घर की चिट्ठी आई तो , बस खुदा देखा
बस ख्वाब ही थे रूबरू तेरा दर्श कहाँ था
जो ख़्वाबों में तू समाई तो ,बस खुदा देखा
जब कभी घर की चिट्ठी आई तो , बस खुदा देखा
बस ख्वाब ही थे रूबरू तेरा दर्श कहाँ था
जो ख़्वाबों में तू समाई तो ,बस खुदा देखा
सुर थे मगर घटाएं ,बिजली ,पंछी के सिवा क्या ?
बजी तेरी प्रीत की शहनाई तो बस खुदा देखा
कई पन्ने पलटे मगर फिर भी रहे बेचैन
पढ़ी "हरिवंश " की रुबाई तो बस खुदा देखा
कभी फाकाकशी तो कभी दो कोर मिले परदेश में
माँ ने अपने हाथ से खिलाई तो बस खुदा देखा ..
बजी तेरी प्रीत की शहनाई तो बस खुदा देखा
कई पन्ने पलटे मगर फिर भी रहे बेचैन
पढ़ी "हरिवंश " की रुबाई तो बस खुदा देखा
कभी फाकाकशी तो कभी दो कोर मिले परदेश में
माँ ने अपने हाथ से खिलाई तो बस खुदा देखा ..
आपकी पोस्ट 3/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 868:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
खूब---तेरी गज़ल नज़र आई तो खुदा देखा
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब।
ReplyDeleteक्या कहने
ReplyDeletedilbaag ji,sangeeta ji,verma ji,maheshvari ji,sada ji,shyam ji aapke sneh ke liye bahut aabhaari hoon
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