ज़िन्दगी ऐसी ही है यहाँ मिटटी का रंग नहीं बदलता
सूरत बचाने में इंसान अपनी शीरत भले बदल दे
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गुफ्तगू होती थी जब भी तेरी मैंने सुना था गौर से
मालूम था कि मेरे नसीब में तेरी मुहब्बत नहीं होगी
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चाँद बेदाग़ नहीं पर फिर भी क्यूँ उसी कि बात है
हम भले ना हो सके आपके ये ग़ज़ल तो साथ हैं
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जब आये मायूसी तो मेरे तश्वीर से गुफ्तगू करना
तुम गम से नहीं अपने रूह से ही रू-बा -रू होना
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जन्म तो फिर लेंगे दुनिया में ,पर मुहब्बत हो न हो
दर्द-ए-दिल का ये शबब और तेरी ज़ीनत हो न हो
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खुशबू बाँटते बाँटते बागवान की अब शाम हो गयी
पर उसे गम है कि सुबह गुलशन को पानी कौन देगा
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डालियों पे लगे पत्ते सूरज को निगलते हैं
तभी तो रोज़ हम घर से ख़ुशी में निकलते हैं
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जलते जलते जल गया पर वो नहीं आये
इक ख़त भी आया तो ज़माने ने जला दिया
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तुम्हारे पास हमें भूलने के बहुत तरीके हैं
पर हम आज भी तुम्हारे ही गम में जीते हैं
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पथराई आँखों में प्यार है किसका
सब चीज हार ,इंतज़ार है किसका
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चेहरे पढ़कर थक गए ,हर मोड़ पे सनम
रूह को जाना होता तो राहें मिल जानी थी
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रंग भरे जो जीवन में वो सपने जाने कहाँ गए ,
वो महफ़िल ,बचपन ,अल्हड़पन ,सब अपने जाने कहाँ गए ...
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