न रकीब है कोई न हि दुश्मनी बेवजह
क्यूँ किसी बद ख्याली में रहे आदमी बेवजह
हमें तो आती है रास बस दुआ की आफताब
हमें न बुलाओ पास अब चाँदनी बेवजह
मुस्तकबिल हो जाए रोशन , सिख ले माजी से
न बीते दोपहर युहीं , न यामिनी बेवजह
कुछ रिश्ते ,नज़्म गीत , घर बार की खुशियाँ
मिल जायेंगी ईमान से ,क्यूँ बेबसी बेवजह
देखो वो सूरज भी कर रहा है मटरगस्ती
करता नहीं है, ये दिल -ओ -जान भी, आवारगी बेवजह
मुबारक तेरे होठों पे होंगी नज़्म की साँसे
जाया न होगी "नील " की दीवानगी बेवजह
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....
ReplyDelete@कुछ रिश्ते ,नज़्म गीत , घर बार की खुशियाँ
ReplyDeleteमिल जायेंगी ईमान से ,क्यूँ बेबसी बेवजह
- क्या खूब कही है!
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteshushma ji,
ReplyDeleteanurag ji
indian darpan ji
aapke sneh ka aabhaari hoon
shukriya
कुछ रिश्ते ,नज़्म गीत , घर बार की खुशियाँ
ReplyDeleteमिल जायेंगी ईमान से ,क्यूँ बेबसी बेवजह
वाह..................
बहुत खूबसूरत....
अनु