उखरी उखरी नाराज़ है आज की रात ,
बिन तेरे दर्श बे -अल्फ़ाज़ है आज की रात
ऊँचे ऊँचे गगन से सपने हैं मगर
एक अनसुनी सी नियाज़ है आज की रात
खो गया मेरा वजूद मेरे सायों में
किसी और की ही मिजाज़ है आज की रात
धड़कने ,साँसें ,हि हैं इस रूह के लिए
तन्हाइयों की साज है आज की रात
कहती है मैं फिर आउंगी सूरज ढले
जाने कितनी सरफ़राज़ है आज की रात .....
खो गया मेरा वजूद मेरे सायों में
ReplyDeleteकिसी और की ही मिजाज़ है आज की रात...बेहतरीन ग़ज़ल...