पतंग की डोर टूट गयी
अब किलकारियां गुजेंगी फिर से
कुछ वीरान सा था ये मुहल्ला
अब गुलशन यहाँ भी महकेंगे
शुक्र हो उस नौसिखिये पतंगबाज़ का
की उसने लोहा नहीं लिया उन अल्हड़ पतंगों से
आज तो एक खुशी उसने तोड़ गिदायी है
दूर तनहा उस पुराने छत से
पत्तंग की डोर टूट गयी
अब किलकारियां गूंजेगी फिर से ......
अब किलकारियां गुजेंगी फिर से
कुछ वीरान सा था ये मुहल्ला
अब गुलशन यहाँ भी महकेंगे
शुक्र हो उस नौसिखिये पतंगबाज़ का
की उसने लोहा नहीं लिया उन अल्हड़ पतंगों से
आज तो एक खुशी उसने तोड़ गिदायी है
दूर तनहा उस पुराने छत से
पत्तंग की डोर टूट गयी
अब किलकारियां गूंजेगी फिर से ......
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