मन को किया स्वीकार ,तुम्हारी आँखों ने
किया सम्पूर्ण मेरा विस्तार, तुम्हारी आँखों ने
धड़कन में रब ने ऐसे तुम्हे बसा डाला
किया हर भ्रम को निराधार ,तुम्हारी आँखों ने
चन्द्र , तारिका, निर्झर सभी निरर्थक थे
ढूँढा मुझमे चित्रकार ,तुम्हारी आँखों ने
तनहा रातें तपती थी ,पूनम की आंच में
नदियों सा अर्पण किया स्वयं को जब मैंने
दिया जीने का आधार ,तुम्हारी आँखों ने
बिखरे रिश्तों में आनंद कभी न ढूंढ सका
कर सजग किया उपकार ,तुम्हारी आँखों ने
हर लिया सारा अन्धकार,तुम्हारी आँखों ने
दिया सागर सा मुझे प्यार,तुम्हारी आँखों ने
हे प्रियतम ! आनंदित "मन " तेरा आभारी है
दिया जीने का आधार ,तुम्हारी आँखों ने
तनहा रातें तपती थी ,पूनम की आंच में
ReplyDeleteहर लिया सारा अन्धकार,तुम्हारी आँखों ने
achche shabd chune hai badhai
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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