Wednesday, January 4, 2012

वाइज़ भी इक मशहूर दीवाना बन गया


याद  जब  भी  आई  उनकी ,इक तराना बन गया 
कितने शायर दिल के दर्दों का फ़साना  बन गया !!


बेनामी  में   सेहरा-ओ- गुलशन  सब   थे   वीराने 
हमदर्द मेरा  भी अब  ये ज़ालिम ज़माना बन  गया !!


इक तश्वीर खीच जाती  है उनकी, हर ग़ज़ल-ए-ख़ास में 
वो मेरा नूर-ए-नज़र  और मैं उनका आइना बन गया!! 


पुछा किये सब कि गुस्ताखी दिल कि थी या हमारी 
लगता है  सादगी से मिलना ही  हरजाना बन गया !!


कुछ ऐसी सिकाफत है गम-ए-जुदाई की  ए "नील "
कि वाइज़ भी इक बहुत मशहूर दीवाना बन गया !!


वो नजीब थे हरदम , उनकी नज़ाफ़त महफूज़ है 
वो काशिफ़ बने  हमारे और  आशियाना  बन गया !!












3 comments:

  1. अच्छा लिखा है आपने नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  2. वो नजीब थे हरदम , उनकी नज़ाफ़त महफूज़ है
    वो काशिफ़ बने हमारे और आशियाना बन गया !!बेहतरीन ग़ज़ल..

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...