बहार चाँद छुपने बाला है बादलों में
सोचा दीदार कर लूं जनाब का
क्या भरोसा इस मौसम में
क्या भरोसा अब अजाब का
कल सूरज की किरणों को समेटना है
तो ख्वाब को नींद बख्शनी होगी
आज जिस तरन्नुम को सिखा है फिजाओं से
कल किसी ग़ज़ल में रखनी होंगी
सोचा दीदार कर लूं जनाब का
क्या भरोसा इस मौसम में
क्या भरोसा अब अजाब का
कल सूरज की किरणों को समेटना है
तो ख्वाब को नींद बख्शनी होगी
आज जिस तरन्नुम को सिखा है फिजाओं से
कल किसी ग़ज़ल में रखनी होंगी
दुआएं ख्वाब में भी आ जायेंगी
इसका ख्याल हमें भी है
आज चलता हूँ मेरे दोस्त
कुछ सवाल रूह के भी है
कुछ सवाल रूह के भी है
khoobsoorat ahsaas
ReplyDeleteबेजोड़ भावाभियक्ति....
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