बेपनाह मुहब्बत में कुछ ऐसे कसूर हो गए
हर महफ़िल हर नज़र से हम दूर दूर हो गए
और कुछ न हो मिला इस खामोश सफ़र में
बेखुदी के मीठे चोट से हम बेबस ज़रूर हो गए
कातिल बना है मुनसिब और पूछता है बार बार
कि आप किस गुनाह में शामिल हुज़ूर हो गए
हमने कहा की क्या सजा है दीद -ए -यार की
वो मुस्कुराए इस तरह की दिल -ए -नूर हो गए
फिरदौस भी मिल जाए गर तो क्या करेंगे हम
हर मोड़ पे जब रिश्ते अपने ना -मंज़ूर हो गए
दिल की धड़कन को ज़रा उनको भी सुना देना हवा
की क्यों वो अजनबी मेरे शाम -ए -सुरूर हो गए
ए खुदा ,तू है अगर तो इक जवाब बस दे मुझे
कि बेवज़ह क्यूँ ख्वाब सारे चूर चूर हो गए
फिर भी हमें सुकून है वो अदब से होंगे वहाँ
क्या ये कम है ,वो हमारे गम के गुरूर हो गए
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