कुछ अफ़साने रूह में उतर जाते हैं मुसाफिर
कुछ उम्मीद टूटकर बिखर जाते हैं मुसाफिर !!
शज़र को सींचते हैं खून पसीने से मगर
कुछ फल के लिए ,क्यों झगड़ जाते हैं मुसाफिर !!
ज़िन्दगी चलती है ,इसे चलना ही होता है
कुछ उम्मीद टूटकर बिखर जाते हैं मुसाफिर !!
आइना लेकर चलते हैं बेगानों की तरह
खुदी को देख क्यों डर जाते हैं मुसाफिर !!शज़र को सींचते हैं खून पसीने से मगर
कुछ फल के लिए ,क्यों झगड़ जाते हैं मुसाफिर !!
ज़िन्दगी चलती है ,इसे चलना ही होता है
जो ख्वाब देखते हैं ,संवर जाते हैं मुसाफिर !!
सुना है दरख़्त पतझर में वीरान होता है
मगर अब पल भर में ,बिछड़ जाते हैं मुसाफिर !!
ए "नील" परछाइयों से क्यों आस करें हम
अँधेरे में वो वायदे से , मुकर जाते हैं मुसाफिर !!
bahut hi badhiya gazal.....kya kahane
ReplyDeleteआइना लेकर चलते हैं बेगानों की तरह
ReplyDeleteखुदी को देख क्यों डर जाते हैं मुसाफिर !!
बहुत खूब....
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 जुलाई 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteज़िन्दगी चलती है ,इसे चलना ही होता है
ReplyDeleteजो ख्वाब देखते हैं ,संवर जाते हैं मुसाफिर !!
वाह !!!!!!!!!!!! सब शेर कितने सुंदर और मर्मस्पर्शी हैं | बधाई नीलांश जी