Sunday, April 29, 2012

तू रहता कहाँ है खुदा !

जो   कभी  न  रही   क्यूँ   उसी  को  याद  करते  हैं ,
ग़म -ए -दुनिया  में  बस  हम  फ़रियाद  करते  हैं .

मुन्तजिर  हुई  आँखें  एक जश्न -ए -महफ़िल  की  ,
वक़्त  की  जंजीर  से  रूह को  आज़ाद  करते  हैं

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जब कदम जिँदगी की लड़खड़ाने लगी ,
तू ख्वाबोँ मे रंग भर मुस्कुराने लगी....

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ख्वाइशों  ने   हमें   पुकारा  बहुत  मगर
तेरे  याद  को  हमने अकेला  न  किया ...
खामोश  धडकनों  को  मिली दुआओं की आवाज़
ज़ीस्त में कोई  शोर  शराबा   न  किया  !!!

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कभी कभी लगा मुकद्दर मेरा हबीब है ,
तो पास आके जालिम ने नकाब हटा लिया !!!

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ख्वाइशों  का  तनहा  बादल , 
छूकर  तेरी  साँसों  को , 
मन  की  आँगन  में  कुछ  यूँ  बरसा  एक  रोज़  
कि अब  तो  निश दिन  
एक  प्यार  के  सागर   में  बह  रही  ये  ज़िन्दगी ..

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मैँने जब कभी जिँदगी को सजदा किया ,
जमाना मिला है रुख बदल के ! 

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सर -ए -शाम  रूह  का  कलाम  ज़र्रे  ज़र्रे  में  बिखर  गया ,
न  जाने  कहाँ  खो  गयी  बला   ग़म  जाने  किधर  गया  !!

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आ भी जा ख्वाब बन के ,जिँदगी से पर्दा उठा !
मन तो हुआ बेगाना ,तू हि राह दिखा !!

न थी कोई रंजिश न थी उससे ख्वाहिश ,
जिस्त कर रहा फिर क्योँ जफा !!

तनहा था तो बदगुमां था ,जशन मेँ बेअदा था ,
छीना क्या ,क्या था पाया ,क्या थी दिल की खता !!!

उबा उबा शहर क्यूँ ,जख्मी हर मंजर क्यूँ ,
एक बार तो बता दे ,तू रहता कहाँ है खुदा !

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दिल की सदाओँ मेँ जब कोई दुआ हो ,
तब बस रुमानियत हो पास खुदा हो !

न अपना पराया  न  हो  कोई बंधन,
जशन मेँ डूबा सारा आसमा हो !!

अँधियारे मेँ न मिले कोई रहगुजर ,
आँखो मे लेकिन प्यार का कोई दिया हो !!

गुमां हो यहि बस जो माजि को झाँके ,
कि हमने भी रब्बा एक जिंद जीया हो !!!

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सहमी सहमी सी परेशान लगती है इन दिनोँ ,
न जाने खुद से क्योँ हैरान लगती है इन दिनोँ !

पहले स्याहि मेँ भरी जाती थी रुह ओ जान ,
पानी पानी हुई बेजान लगती है इन दिनो !!

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Saturday, April 28, 2012

मन बांवरा है


तुझसे  गुफ्तगू  तेरे  चर्चे  हँसती  गाती  मेरी  पलकें
चाँदनी  बिखर  गयी   बस   युहीं   बर्फ   बह   रही   पिघल  के

एक  साज  था  अजनबी  सा  मगर  तेरी  दुआओं  से  बनी  धुन
आज  कर  रहा  है  गुंजन   राफ्ता  राफ्ता  हल्के  हल्के

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तेरे  एहसान  बहुत  हैं  रब  ,कुछ  मांगने  की  गुजारिश  नहीं ....
मगर  कोई   गुजारिश  न  रहे  ,बस  ये  दुआ  कबूल कर ......

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इत्तेफाक़न  कुछ  भी  नहीं  होता   ज़माने  में   ,
कई  ख्वाब  टूटते  बिखरते  हैं  निभाने  में

न  तोड़िये  बेसाख्ता  इन  धडकनों  की  साज
कहीं  उम्र  न  गुज़र  जाए  उनको  मनाने  में

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जब  भी  तेरे  ख्याल -ओ -ख्वाब  की  चाँदनी  आई
मैं  चाँद  से  और  भी  दूर  होता  गया ...
भीनी  भीनी   सी   वो   खुशबू  धरती   की  भूल  और
तेरी  शिरत  पे  आशना  मेरे  हुज़ूर  होता  गया ...

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हम  ग़मों   की  दहलीज़  से  गर   कतरा  के  निकल  जाते ,
तो  वो  रकीब  मेरा,  दायरा  बढ़ा  लेता ..
उसे  ज़ेहन  -ओ -दिल   में  कुछ  जगह  बक्श  दी
तो  रोज़   वो  बरस  रहा  है  ख़ुशी  बनकर ...

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चलो  ख्वाब  में  मिलते  हैं ,ज़ीस्त  में  चैन   कहाँ ,,,,,,
धडकनों  के  मायने  समझते  नैन  कहाँ .......

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चरागों  सा  जलोगे  तो  राहत  होगी ,
खुलुश  रखने   से  तो  जल  जाओगे ,
ढला  करो  तो  सूरज  बनकर ,
नहीं   तो  बेवक्त  ढल  जाओगे

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मन  बांवरा  है  अपने  जूनून  में  है ,
तेरा  असर  मौला  जिस्म -ओ-खून  में  है

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आज  ख्वाब  रास्ता  भटक  गए  हैं  बावस्ता   हूँ  महफ़िल  से ,
शोर  करूँ  पैमाना  टूटने  का  या  याद  करूँ  तुझे   दिल  से ...

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बेसाख्ता  कुछ  तार  उलझ  गए  होंगे  मेरे   गली  में ,
वरना  वो  चेहरे  पुराने  थे  जो   नहीं  गुज़रे   कभी ...

एक  दिया  है  जो  जलता  रहा  उस  मंदिर  की  देहलीज़  पर
उनके  याद  के  पन्ने   भी  वहीँ   है  न  बिखरे   कभी ...

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Friday, April 27, 2012

अजनबी शहर में !



अकेले नहीं हम साथी , इस अजनबी शहर में 
अब भी है हसरतों की ,मौजूदगी शहर में !!


महफ़िल में मिल के सबसे ,कभी ख्वाब बाँटते थे
तनहा ख़्वाबों की हुई अब,ज़िन्दगी शहर में !!

शायद मिलन है अन्तिम,है आखिरी दुआ भी
अब महफिल सजा करेगी  ,किसी और ही शहर में !!

कुछ खुशनुमा एहसासों के किस्से ही साथ होंगे
छोड़ जायेंगे अल्हड़ सी , दीवानगी  शहर में

आँगन में होगी गुफ्तगू बस तेरे ही आहटों की
भीड़ में न गुम हो जाना, उस मतलबी शहर में !!

बड़े ईमान से भेजा था ,दे पोटली बूढी माँ ने
रोटी पसीने की ले   हो ,वापसी शहर में !!

कितने ही क़र्ज़ तुझको साँसों के उतारने होंगे
ऐसी इबादत करना , हो बंदगी शहर में !!

धड़कन , कदम , फिजायें सब संग हो जाएँ
रब करे तू   लाये ऐसी , सादगी शहर में !!


"नीलांश " 

Thursday, April 26, 2012

रब्बा


रब्बा   तेरी  हर  बात  से  इत्तेफाक  है  मुझे ,
जो  तू    न   होता   तो  दिल   एक  पत्थर   था
तेरी  हर  दुआ  से  वाकिफ  भी  हूँ
तू  ही  था  मीत ,तू  हि  एहसास  तू  ही  मेरा  मंज़र  था
जो  तुने  दी  है  तन्हाई
आज  मेरे  ज़ीस्त  की  राह   में
तो  तुने  हि  भरी  थी  मुहब्बत  साँस -औ -धड़कन  में
तडपा  था  तू  हि  मेरी  हर  आह  में ...

कि  मुहब्बत  न  कर  के  तुझसे  मुतालिक  कोई  क्या  होगा
तन्हाई  तो  ज़िन्दगी  भर  रही  बीत  जाने  पर   भी  तनहा  होगा ...

ख्वाब मुझे जगाने आये

 
ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ,
आज  मुझे  अपनाने   आये ,
पलकों  से  धड़कन  में  समाये
रूह  की  सेज  सजाने  आये
 
ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ...

निश्चल   हैं  बचपन  जैसे
रब  पे  हों   वो   अर्पण   जैसे
सुरमई  कोई   एहसास  संजोये
जीवन  गीत  सुनाने  आये

ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ...

गिरते  शीतल  झरने  जैसे
सुन्दर  प्यारे   लम्हे  जैसे
हलके  हलके   प्यार   से  चलके
मन  की  ज्योत  जलाने  आये

ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ...

तन्हाई  में  परछाई  से
छंद  गध्य   या  रुबाई  से
रूहानी  से मंज़र   में  वो
होठों  को  मुस्काने  आये

ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ...

कैसी  ख्वाइश  किससे   राबता
वक़्त  का   पहिया  दूर  भागता
फिर  भी  वक़्त  से  आँख   चुराकर
चुपके  चुपके  सिरहाने  आये

ख्वाब  मुझे  जगाने  आये ...
ख्वाब   मुझे  जगाने  आये ...

Tuesday, April 24, 2012

गुलमोहर

पस   -ए -दरीचे  मेरे  एक  गुलमोहर  है ,
उस  दरख़्त  को  मेरी  खैर  -ओ -खबर  है

वक़्त  की   करवट  नहीं  रखता  वो  होशमंद
ज़माने  की  शोहबत  से  वो  बे -असर  है

आज  जब  खो  गया  मेरा  सारा  अल्हड़पन
ये  देख    वो  रोया   है  आज  तर -ब -तर  है

दहलीज़  से  लौटें  हैं  कई   शक्ल  जिस्म -ओ-जान 
लेकिन  वो  है  वहीँ  मेरा  हमसफ़र  है

परिंदों  को  प्यारा   है  एक  "नील  " सा  गगन
और  दरख़्त  वो  बेगर्ज़  ही  तो  उनका  घर  है

Monday, April 23, 2012

इंतज़ार

पन्नो  से  मरासिम  है  हर्फ़  से  प्यार  करता  हूँ ,
रूह  के   घरौंदे  में  खुदा   का  इंतज़ार   करता  हूँ

समेटता   हूँ  धडकनों   को  भटकने  नहीं  देता ..
सर -ऐ -महफ़िल   जलता   हूँ  सबा  गुलज़ार   करता  हूँ ...

आइना  टूटे  तो   क्यूँ  अब  ग़मगीन  करें   ज़ीस्त
शीशा -ऐ -दिल  तो  रौशन  है  न  सोगवार   करता  हूँ ..

Sunday, April 22, 2012

ख्वाब बुला रहें हैं

नींद से जागे तो ज़िन्दगी बदल गयी ,
कोई चिन्गाड़ी लगी ऐसी की शम्मा जल गयी ...

तेरे दुआओं की रहमतें थी शायद ,
कि  हर   बला  आते -आते टल गयी ..


ख्वाब बुला रहें हैं मुझे ज़िन्दगी , कल फिर  रूबरू हूँगा तो बता देना ...
कोई तोहफा देना मुझे तू या  फिर किसी बात कि सजा देना ...

कई पहेलियों को सुलझाना था मगर चाहे जैसी तेरी मर्ज़ी
तू राह दिखाना  रूक कर   मुझे या फिर इलज़ाम  लगा देना


अब ख्वाईशें पूछती हैं पता मुझसे ,
कोई मुहब्बत सिखाये तो अच्छा है ..

नहीं पढनी अब ज़माने भर की किताब  ,
कोई आँखों से ही पढाये तो अच्छा है ...


आज की शाम न जाने कयामत क्या होगी ,
साथ होगी ज़िन्दगी या फिर खफा होगी ...

उनको मालूम नहीं की क्या मायने हैं उनके ,
वो गुनाह समझती है हमें मगर वो ही दवा होगी ...

ये तिश्नगी कैसी है कैसी ये चाहत है ,
हाल -ए-दिल क्या कहें अब ये दिल की उल्फत है ..

दो पल की है ज़िन्दगी दो जहां के उलझन ,
काँटों के राह पे क्यूँ चलती मुहब्बत है ...

तेरी आहट याद है सारे गम भूल गए ,
क्या थी हस्ती अब क्या है हम भूल गए ..

क्या पायेंगे कुछ सोचा नहीं वीराने में ,
महफ़िल के रस्ते भी सनम भूल गए ...

मजधार


ख़्वाबों  के बादल मंडराने लगे हैं
मेरे पलकों के पर्वत के दरमियाँ
तुम्हारे बोल के चमकते सितारे
टंके  हुए हैं मेरे मन के गहरे आसमाँ  में  

यादों के फूल महकने लगे हैं दिल के बगिया में
उम्मीद के सूरज का घोडा दौर रहा है अपनी सम्पूर्ण तीव्रता के साथ
साथ ले जा रहा है वहम के हर काले साए को
फिर इक और ज़िन्दगी की सुबह को रौशन करने

और इसी बीच तुम्हारे न होने का ग़म भी है
जो अश्कों से अपनी मौजूदगी दिखा रहा है
मगर तेरी दुआओं का मरहम भी है
जो मेरे हर उलझन पर से पर्दा हटा रहा है
और चल रही है ज़िन्दगी की नाव इसी ,आज और भविष्य के मजधार में अनवरत ....

Saturday, April 21, 2012

ना पूछुंगा

 
ना  पूछुंगा  कि  मेरी  हैसियत  भी  क्या  है ,
मुहब्बत  के  सिवा   उनकी  शिकायत  भी  क्या  है  ?

जहाँ  रहे  तू  वहाँ  दुआएं  रहें  ,
जहाँ  नहीं  तू  वो  जन्नत  भी  क्या  है ...

पूछना  था  रब  से  कि  मुकद्दर  क्यों  बनायी
इस  ज़िन्दगी  की  मौला  ज़रुरत  भी  क्या  है ..

अब  मुस्कराहट  से  गम  छुपाना  हुआ  मुश्किल
ये  सच  छुपाने  की  मेरी  आदत  भी  क्या  है ...

लब  पे   हैं   मौजूद  जो  रूह    से  जुड़े
उनके   बिना  कोई  ख़ुशी  कोई  शोहरत  भी  क्या  है ..

मेरा प्यार भी अजीब था

ये  जो  इश्क  है  वो  जूनून  है ,वो  जो  न  मिला  वो  नसीब  था  
वो  पास  होके  भी दूर   था  या  पास  होके   करीब  था ..

मेरे  हौसले  का  मुरीद  बन  या   दे  मुझे  तू  अब  सजा ,
तू  ही  दर्श  था  तू  ही  ख्वाब  था  तू  ही  तो  मेरा  हबीब  था ..

उस   शहर  की  है  ये   दास्ताँ  जहां  बस  हम  थे  दरमियान ,
न  थी  दुआ  न  थी  मेहर  न  तो  दोस्त  था  न  रकीब  था ..


करता   रहा  दिल   को  फ़ना  जिसे  लोग   कहते  थे  गुनाह ,
एक  अजनबी  पे  था  आशना  मेरा  प्यार  भी  अजीब  था ...

एक ख्वाब की दास्ताँ नहीं ये

तुझसे   प्यार   किया  तेरी  शिरत  पे  कुर्बान  है ,
तेरे   हर  अदा  का  ये  भी   कदरदान   है ..

तेरे  आहों  से  है  रूबरू  दुआओं  से  वाकिफ ,
तेरे  गम  में  ये  भी  तो  परेशान  है ...

एक  ख्वाब  की  दास्ताँ  नहीं  ये  हकीकत  है  प्यारे ,
तेरे  मुहब्बत  में  डूब   गया  दिल -ऐ -नादान   है ..

अरमान  सारे  छुपा  लेता  है  कहता  नहीं  तुझसे ,
लब  खामोश  है  साहिल   की  तरह   दिल   में  मगर   तूफ़ान  है ..

शाम  तो   ढलती   है   हर  दिन  सुबह  भी  होती  है  रोज़ ...
मगर  इस  दिल  के  शीशे  पे  तेरा  अमिट  निशान  है ..

रोज़  गम  से  बिखर  जाने   का  जी  होता  है ..
मगर  मर   जाना  भी  ज़िन्दगी  में  क्या  आसान  है  ?

Thursday, April 19, 2012

मेरा तो अब बस नहीं कोई

लब   खामोश    सही   ,दिल  में  तुम्हारी  धड़कन  है ...
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही  ये  मन  है ..
हर  फूलों  में  ढूंढता  है  तेरा  रूप  ...
तेरे  ख़्वाबों  से  है  मेरी  छाओं  धुप
तेरी  यादों  से  आबाद  मेरा  गुलशन  है ....
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही  ये  मन  है ..

तुझसे  कह  पाता  नहीं  है  राज़ -ए-दिल ...
अब  तो  सुनी  लगती  है  हर  महफ़िल
तू    समझ  पाता  नहीं  यही   उलझन  है ..
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही  ये  मन  है ..
हो  सके  तो  एक  दफा  आवाज़  को  पहचान  ले ,
मेरे  साँसों  में  छुपी  बातों  को  तू  भी  जान  ले ...
 जान ले तुझसे ही आँगन रौशन   है ..
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही  ये  मन  है ..

इतना  आसां होगा   नहीं  भुला  देना ,
तेरे  गम  में  दिल  को   फिर  सजा  देना ...
अपनी  चाहत  का  तुझी  पे  अर्पण  है ...
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही   ये  मन  है ..

अश्कों    से  लिखता  हूँ  मैं  इक  ग़ज़ल ..
रखता  हूँ  कदम   ज़रा  संभल  संभल
हर  गम  में  तुझे  ढूंढता  ये   जीवन   है
मेरा  तो  अब  बस  नहीं  कोई  , तेरा  ही  ये  मन  है ..

तेरा चेहरा जो कभी गुलशन में नज़र आये ..

मौसम    की   तपिश  से  राहतें  मिल  जाएँ ,
तेरा  चेहरा  जो  कभी  गुलशन  में  नज़र   आये ..
मेरी   हर  उलझन  मिटे  बस  एक  तेरे  दर्श   से ,
क्षितिज   पे  पहुँच  जाऊं   मैं  पल  में  अर्श  से
जो  कभी   तू  चराग -ए -ज़िन्दगी   जलाए ...
तेरा चेहरा जो कभी गुलशन में नज़र आये .. 

ये   जादू  है  मुहब्बत  का  या   फलसफा  कोई ,
ये  इबादत  है  खुदा  की  या  दुआ  कोई ..
अश्क  भी   जब  छलकने  लगें  तो  मोतियों  से  दिखें ,
हर  कोर  जैसे  माँ  की   बनी   रोटियों   से  दिखे ..
हर  शब्द  मेरे  नज़्म  की  एक  दास्ताँ  बन  जाएँ ..
तेरा चेहरा जो कभी गुलशन में नज़र आये .. 

मैं  फलक  की  आरज़ू  करता  नहीं  यारा ,
समंदर  की  लहरों  से   कभी  डरता  नहीं  यारा ,
क्या  मुझे  है   शिकायत  इस  जहां  से ,
क्या  मुझे  है  गिला  कोई  तूफ़ान  से ,
तू  जो  ले  पतवार  जब  मजधार  में  आये ,
मेरे  हौसलों  में  साथ  दे  पासवां  बन  जाए   ,
तेरा चेहरा जो कभी गुलशन में नज़र आये .. 
तेरा चेहरा जो कभी गुलशन में नज़र आये .. 

Wednesday, April 18, 2012

सफ़र

मेरे   ख्यालों   में   आ   जाओ   लब   की   मुस्कान  बन   जाओ
आकाश  के   सफ़र  पे  निकला  हूँ  मेरी   उड़ान  बन  जा ओ ...

अब  खामोशियों  से  भी  कोई  साज़   बने  वीराने  में
मेरे   तरन्नुम  में  बस  जाओ  मेरी  जुबान  बन  जाओ ...

साहिल   पे  लहरों  की  तरह  से   आओ  मेरे  जीवन  में
बस    मेरी  सादगी  बन  जाओ  मेरा  ईमान   बन   जाओ ..

मेरे  शब्दों  को  दिखा  दो  रौशनी  चरागों  की  तरह ..
मेरे   गीतों  से  छलक जाओ  सुरीली   तान  बन  जाओ .....

Tuesday, April 17, 2012

तेरे भूलने का ग़म नहीं हमें,मगर


इस ज़माने को समझाएं कैसे
जो नहीं मेरा है,उसे पायें कैसे

ग़म-ए-दुनिया ने तोडा कश्ती 
लहरों के पार अब जाएँ कैसे

हो सके तो माफ़ कर देना हमें 
हम अदद आशिकी छुपायें कैसे

गुलशन में खार ही खार हैं अब 
तितलियों    को भला हम बुलाएं कैसे

तुने ही जो दीप जलाया था कभी 
अश्कों से भला उसे बुझाए कैसे 

जो मेरा हाल है,वो ही तेरा होगा 
तो बोल सनम तुझे तरपायें कैसे 

 तू टूट न जाए कहीं भर-ए-महफ़िल
इसलिए ये नगमे तुझे सुनाये कैसे 

 तेरे भूलने का ग़म नहीं हमें, मगर 
कोई दोष दे तुझे तो ये रह पाए कैसे








सपनो को बिखरने दो

सपनो  को  बिखरने दो
मगर समेट लो उनके टूटने के पहले
फिर बना लो इक  जहां अपना 
जहाँ तुम विचरण करो उन के पंखो पर 
और बिखेरते रहो 
अपने एहसासों को 
अपने अनुभवों को 

कोई उनके सहारे उड़ना सिख जाए
किसी की नींद सुहानी हो जाए
किसी का दिल भर जाए
और किसी को इक दोस्त मिल जाए
तो बिखरने दो ना इन नन्हे मुन्हे सपनो को 

Saturday, April 14, 2012

ये कैसी है कोशिश ,जो नतीजे नहीं मिलते


सूझती है मंजिलें ,मंगर रस्ते नहीं मिलते 
मतलबी शहर में अब, फ़रिश्ते नहीं मिलते 

सब को पसंद है  शोहरत की खुशबू मगर 
इंसानियत के अब कोई रिश्ते नहीं मिलते 

हर तरफ मजहबी रंगों की ही खुमारी है
बच्चों के दिल के वास्ते किस्से नहीं मिलते 

पूछो तो यहाँ महफ़िल में बस शोर होते हैं 
मगर गुरबत्त कैसे मिटे,कोई नुक्ते  नहीं मिलते 

कब से सिर्फ जुगार की मेहेरबानियाँ है यहाँ 
ये कैसी है कोशिश ,जो नतीजे नहीं मिलते 





Wednesday, April 4, 2012

शिरत न बदलना कभी

महफ़िल में जुदा हो के न रहना कभी
राज़-ए-दिल कभी युहीं, न कहना कभी

दरख्तों पर फल कभी ना लगे अगर 
उनके छाँव को न यूँ , भूलना कभी 

लहरें बस कहती हैं मांझी से, ये सुनो 
किनारे पे न बसेरा फिर ढूंढना कभी 

अखबारों से खबर लग जायेगी कल
बेगानों का यकीन ऐसे ,न करना कभी 

इन रंगीन पटाखों की बेवजह शोर में 
उन जवानो की खबर तुम  लेना कभी 

सुबह गुरबत्त से न मर जाओ सनम
इसलिए अँधेरे रात में, जगना कभी 

रास्ता बदले मगर मंजिल पाक ही रहे 
मिट जाना पर  शिरत न बदलना कभी 





Sunday, April 1, 2012

Main duaayen us rab se karta rahunga

Ye kaisa asar hai hua sabko khabar hai
tu hi hai shab me tu hi dopahar hai..... 


Tere hi saayen hain mere khwaabon ke darmiyaan, 
tere hi yaadon me khoya safar hai.....


 Na gila na shikaayat na koi hai khwaaish,
 bas ek talaash tu hai jo umr bhar hai.....


 Parindo se hamne bhi sikha hai sanam,
 jahaan aasmaan hai wahin apna ghar hai....


 Ab charaag bhi ham jalaayen to kyun,
 tu hi raushani hai tu noor-e-nazar hai .....


 Main duaayen us rab se karta rahunga,
 kabhi to sunega jo ab bhi bekhabar hai...

दिल की बात


इक   पत्ता    आँगन  में  उड़ते हुए   युहीं  आ  गया  
उसे  अपनी  नज्मो  वाली  किताब  में  महफूज़  रख  दिया  


आज  पन्ने   पलटे   तो  उसकी  दिल  की  बात  उभर  आई  थी  ....

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...