जो कभी न रही क्यूँ उसी को याद करते हैं ,
ग़म -ए -दुनिया में बस हम फ़रियाद करते हैं .
मुन्तजिर हुई आँखें एक जश्न -ए -महफ़िल की ,
वक़्त की जंजीर से रूह को आज़ाद करते हैं
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जब कदम जिँदगी की लड़खड़ाने लगी ,
तू ख्वाबोँ मे रंग भर मुस्कुराने लगी....
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ख्वाइशों ने हमें पुकारा बहुत मगर
तेरे याद को हमने अकेला न किया ...
खामोश धडकनों को मिली दुआओं की आवाज़
ज़ीस्त में कोई शोर शराबा न किया !!!
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कभी कभी लगा मुकद्दर मेरा हबीब है ,
तो पास आके जालिम ने नकाब हटा लिया !!!
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ख्वाइशों का तनहा बादल ,
छूकर तेरी साँसों को ,
मन की आँगन में कुछ यूँ बरसा एक रोज़
कि अब तो निश दिन
एक प्यार के सागर में बह रही ये ज़िन्दगी ..
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मैँने जब कभी जिँदगी को सजदा किया ,
जमाना मिला है रुख बदल के !
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सर -ए -शाम रूह का कलाम ज़र्रे ज़र्रे में बिखर गया ,
न जाने कहाँ खो गयी बला ग़म जाने किधर गया !!
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आ भी जा ख्वाब बन के ,जिँदगी से पर्दा उठा !
मन तो हुआ बेगाना ,तू हि राह दिखा !!
न थी कोई रंजिश न थी उससे ख्वाहिश ,
जिस्त कर रहा फिर क्योँ जफा !!
तनहा था तो बदगुमां था ,जशन मेँ बेअदा था ,
छीना क्या ,क्या था पाया ,क्या थी दिल की खता !!!
उबा उबा शहर क्यूँ ,जख्मी हर मंजर क्यूँ ,
एक बार तो बता दे ,तू रहता कहाँ है खुदा !
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दिल की सदाओँ मेँ जब कोई दुआ हो ,
तब बस रुमानियत हो पास खुदा हो !
न अपना पराया न हो कोई बंधन,
जशन मेँ डूबा सारा आसमा हो !!
अँधियारे मेँ न मिले कोई रहगुजर ,
आँखो मे लेकिन प्यार का कोई दिया हो !!
गुमां हो यहि बस जो माजि को झाँके ,
कि हमने भी रब्बा एक जिंद जीया हो !!!
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सहमी सहमी सी परेशान लगती है इन दिनोँ ,
न जाने खुद से क्योँ हैरान लगती है इन दिनोँ !
पहले स्याहि मेँ भरी जाती थी रुह ओ जान ,
पानी पानी हुई बेजान लगती है इन दिनो !!
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