पस -ए -दरीचे मेरे एक गुलमोहर है ,
उस दरख़्त को मेरी खैर -ओ -खबर है
वक़्त की करवट नहीं रखता वो होशमंद
ज़माने की शोहबत से वो बे -असर है
आज जब खो गया मेरा सारा अल्हड़पन
ये देख वो रोया है आज तर -ब -तर है
दहलीज़ से लौटें हैं कई शक्ल जिस्म -ओ-जान
लेकिन वो है वहीँ मेरा हमसफ़र है
परिंदों को प्यारा है एक "नील " सा गगन
और दरख़्त वो बेगर्ज़ ही तो उनका घर है
उस दरख़्त को मेरी खैर -ओ -खबर है
वक़्त की करवट नहीं रखता वो होशमंद
ज़माने की शोहबत से वो बे -असर है
आज जब खो गया मेरा सारा अल्हड़पन
ये देख वो रोया है आज तर -ब -तर है
दहलीज़ से लौटें हैं कई शक्ल जिस्म -ओ-जान
लेकिन वो है वहीँ मेरा हमसफ़र है
परिंदों को प्यारा है एक "नील " सा गगन
और दरख़्त वो बेगर्ज़ ही तो उनका घर है
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