पन्नो से मरासिम है हर्फ़ से प्यार करता हूँ ,
रूह के घरौंदे में खुदा का इंतज़ार करता हूँ
समेटता हूँ धडकनों को भटकने नहीं देता ..
सर -ऐ -महफ़िल जलता हूँ सबा गुलज़ार करता हूँ ...
आइना टूटे तो क्यूँ अब ग़मगीन करें ज़ीस्त
शीशा -ऐ -दिल तो रौशन है न सोगवार करता हूँ ..
रूह के घरौंदे में खुदा का इंतज़ार करता हूँ
समेटता हूँ धडकनों को भटकने नहीं देता ..
सर -ऐ -महफ़िल जलता हूँ सबा गुलज़ार करता हूँ ...
आइना टूटे तो क्यूँ अब ग़मगीन करें ज़ीस्त
शीशा -ऐ -दिल तो रौशन है न सोगवार करता हूँ ..
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
ReplyDeleteaap logon ke sneh liye aabhaari hoon
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