Monday, April 23, 2012

इंतज़ार

पन्नो  से  मरासिम  है  हर्फ़  से  प्यार  करता  हूँ ,
रूह  के   घरौंदे  में  खुदा   का  इंतज़ार   करता  हूँ

समेटता   हूँ  धडकनों   को  भटकने  नहीं  देता ..
सर -ऐ -महफ़िल   जलता   हूँ  सबा  गुलज़ार   करता  हूँ ...

आइना  टूटे  तो   क्यूँ  अब  ग़मगीन  करें   ज़ीस्त
शीशा -ऐ -दिल  तो  रौशन  है  न  सोगवार   करता  हूँ ..

2 comments:

  1. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो

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