ये जो इश्क है वो जूनून है ,वो जो न मिला वो नसीब था
वो पास होके भी दूर था या पास होके करीब था .. मेरे हौसले का मुरीद बन या दे मुझे तू अब सजा ,
तू ही दर्श था तू ही ख्वाब था तू ही तो मेरा हबीब था ..
उस शहर की है ये दास्ताँ जहां बस हम थे दरमियान ,
न थी दुआ न थी मेहर न तो दोस्त था न रकीब था ..
करता रहा दिल को फ़ना जिसे लोग कहते थे गुनाह ,
एक अजनबी पे था आशना मेरा प्यार भी अजीब था ...
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
thanku sushma ji
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