Saturday, April 21, 2012

मेरा प्यार भी अजीब था

ये  जो  इश्क  है  वो  जूनून  है ,वो  जो  न  मिला  वो  नसीब  था  
वो  पास  होके  भी दूर   था  या  पास  होके   करीब  था ..

मेरे  हौसले  का  मुरीद  बन  या   दे  मुझे  तू  अब  सजा ,
तू  ही  दर्श  था  तू  ही  ख्वाब  था  तू  ही  तो  मेरा  हबीब  था ..

उस   शहर  की  है  ये   दास्ताँ  जहां  बस  हम  थे  दरमियान ,
न  थी  दुआ  न  थी  मेहर  न  तो  दोस्त  था  न  रकीब  था ..


करता   रहा  दिल   को  फ़ना  जिसे  लोग   कहते  थे  गुनाह ,
एक  अजनबी  पे  था  आशना  मेरा  प्यार  भी  अजीब  था ...

2 comments:

  1. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

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