समर्पित कर दे अब वर्त्तमान को
तू भटक न जाना संसार में
अर्पित कर दे सब कर्म को
तू ठिठक न जाना तिरस्कार से
द्रवित कर ले ह्रदय पाषाण को
तू दहक न जाना अहंकार में
संचित कर ले सत्य धर्म को
तू बहक न जाना प्रचार में
कम्पित कर दे व्यर्थ अज्ञान को
तू छिटक न जाना मझधार में
खंडित कर दे अर्थ भ्रम को
तू खनक न जाना व्यापार से
शानदार रचना। बधाई स्वीकार करें। मैं भी बिहार के बिहार शरीफ से ताल्लुक रखता हुॅ।
ReplyDeleteवक्त मिले तो हमारे ब्लाग पर भी पधारें।
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बहुत सुन्दर ...हरेक पंक्ति प्रेरक सूत्र वाक्य...
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