Thursday, April 28, 2011

और फिर उस सन्नाटे में उसे एक बुलंद आवाज़ मिल जाती है ...

बहुत दूर 
अनजाने सड़कों पर 
अनजाने से चेहरों के बीच 
साथ कोई अपना सा लगता है 
जब भीड़ में खो जाना 
बड़ा डरवाना सा लगता है 

साँसे तेज़ हो जाती है 
और आ जाती है वो 
धडकनों को संभालने 

बुझे हुए चेहरे 
झुलसे हुए बदन को 
आँचल से सवारने 

और फिर सारे चेहरे 
अपने से लगने लगते हैं 
हर दिल मिलकर
धड़कने से लगते हैं 

और उस धून से 
उसके  माँ की पुकार आ जाती है 
और फिर उस  सन्नाटे में 
उसे एक बुलंद आवाज़ मिल जाती है ...


 निशांत अभिषेक 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर अहसास..सुन्दर प्रस्तुति

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