तू पास था दिल के साथिया,जब ज़िन्दगी मुझसे दूर थी
तेरी हर बात मेरा ख्वाब ,हर अंदाज़ मेरा गुरूर थी
अनजान ही रहा सदा , इस जहां के मिज़ाज से
आशिकी अपनी मगर ,तेरे शहर में मशहूर थी
तुझसे गिला करता , ऐसा था न अपना सिलसिला
हमको तो तेरी सादगी से बेवफाई भी मंज़ूर थी
तू न बदले गम नहीं , बदले न तेरी शिरत कभी
दफन हर अरमां कर सकूं ,ये कोशिशें बदस्तूर थी
तुझसे बिछुड़े हुए यूँ तो ज़माना हो गया
हर अमावस में मगर , तू संभालती ज़रूर थी
अब जो तुझसे फिर कभी मिल न सकेंगे साथिया
कैसे भुला दें हम मगर ,कि तू ही दिल- ए -नूर थी
दिल से लिखी गयी रचना आभार
ReplyDeleteअनजान हरदम ही रहा ज़माने के मिजाज़ से
ReplyDeleteपर हमारी आशिकी तेरे गलियों में मशहूर थी
vah kya bat hai !bahut khoob .badhai .
अनजान हरदम ही रहा ज़माने के मिजाज़ से
ReplyDeleteपर हमारी आशिकी तेरे गलियों में मशहूर थी
वाह नीलेश जी खूबसूरत शेर बधाई
तू न बदले कोई गम नहीं , शिरत बस तेरी न बदले
ReplyDeleteदफन हर अरमान कर सकूं ये कोशिशें बदस्तूर थी
... bahut badhiyaa
waah! bhut khub kaha apne...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल पे्श की है आपने!
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