Tuesday, June 21, 2011

वो एक ख्वाब न था !

हम-तुम  मिले जब , वो एक ख्वाब न  था 
बहारा था शायद , मगर अज़ाब न था !!

दिल-ए -महफ़िल  में हैं ,महफूज़ मंज़र सारे 
कोई खबर या  ख़त  का वो  हिसाब न था !!

झील की खामोशी सी तेरी मुरब्बत थी 
क्या हुआ  "नील " ,जो  कोई  ज़वाब न था !!

खनकते सिक्कों  से ये  रिश्ते टूट जाते हैं 
क्या ये कम है क़ि  तेरा कभी इताब  न था !!

तबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में 
इससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!

किस्सा-ए-ग़म सुनाने की कोई गर्ज़ न थी 
ये दिल की दवा थी  ,कोई शराब न था !!



"नीलांश" 






3 comments:

  1. खनकते सिक्कों से ये रिश्ते टूट जाते हैं
    क्या ये कम है क़ि तेरा कभी इताब न था !!
    वाह वाह क्या बात है ,मुबारक हो

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  2. तबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में
    इससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!

    वाह, बहुत सुंदर भाव,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete

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