हम-तुम मिले जब , वो एक ख्वाब न था
बहारा था शायद , मगर अज़ाब न था !!
दिल-ए -महफ़िल में हैं ,महफूज़ मंज़र सारे
कोई खबर या ख़त का वो हिसाब न था !!
झील की खामोशी सी तेरी मुरब्बत थी
क्या हुआ "नील " ,जो कोई ज़वाब न था !!
खनकते सिक्कों से ये रिश्ते टूट जाते हैं
क्या ये कम है क़ि तेरा कभी इताब न था !!
तबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में
इससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!
किस्सा-ए-ग़म सुनाने की कोई गर्ज़ न थी
ये दिल की दवा थी ,कोई शराब न था !!
"नीलांश"
खनकते सिक्कों से ये रिश्ते टूट जाते हैं
ReplyDeleteक्या ये कम है क़ि तेरा कभी इताब न था !!
वाह वाह क्या बात है ,मुबारक हो
bhut bhut acchi khubsurat gazal...
ReplyDeleteतबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में
ReplyDeleteइससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!
वाह, बहुत सुंदर भाव,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com