जब दुआएं संग है
और बाकी है जीने की ललक ,
तब सूरज की लाली को छुपा लाऊँगा
चाँदनी से सफेदी चुरा लाऊंगा
घास पर नंगे पाँव चलते -चलते हरे हो ही गये हैं अपने सपने
और न मिली भी मुझे
वो दूर खड़ी ललचाती हुई फलक !!
तो ख़्वाबों के समुंदर में डूब
मोतियों से शब्दों को चुन ..
गीतों की माला ही बना लाऊंगा ,
पर आऊंगा ज़रूर गाँव वापस ...
कुछ नहीं तो सपनो को संग ले आऊंगा ..
आऊंगा,ज़रूर मैं आऊंगा ....
पर आऊंगा ज़रूर गाँव वापस ...
कुछ नहीं तो सपनो को संग ले आऊंगा ..
आऊंगा,ज़रूर मैं आऊंगा ....
bhut hi khubsurat rachna.. very very nice...
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteतो ख़्वाबों के समुंदर में डूब
ReplyDeleteमोतियों से शब्दों को चुन ..
गीतों की माला ही बना लाऊंगा ,
पर आऊंगा ज़रूर गाँव वापस ...
कुछ नहीं तो सपनो को संग ले आऊंगा ..
Very emotional creation !...thanks Neelansh ji.
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