"आनंद " तेरी ग़ज़लों का आनंद है निराला
भरता हूँ उनसे ही अपने जिगर का प्याला
किसी रोज़ कोई ग़ज़ल कहीं गलियों में सुनाई देगी
रहे "नील" न वहां ,पर होगा वहीँ पर प्याला
जिन्हें हो तृष्णा आनंद की वो चखेंगे उसको हरदम
और कुछ नहीं उनको मिलेंगे मधुर गीत और नज़्म
अभिषेक मन के उपवन की उसे पीकर ही हो सकेगी
रब की ओर होगा मुखातिब हर आनंद पीने वाला
जिन्हें हो तृष्णा आनंद की वो चखेंगे उसको हरदम
और कुछ नहीं उनको मिलेंगे मधुर गीत और नज़्म
अभिषेक मन के उपवन की उसे पीकर ही हो सकेगी
रब की ओर होगा मुखातिब हर आनंद पीने वाला
"नीलांश "
(आनंद द्विदेदी जी जो बहुत प्यारे प्यारे ग़ज़ल लिखते हैं और उनकी ग़ज़ल पर मैं कुछ तुकबंदी करता हूँ ,उसी तुकबंदी को ये समर्पित रचना है .)
बहुत आभार आनंद जी आपका और आपकी मधुर ग़ज़लों का
waah! bhut khub....
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