Monday, June 20, 2011

चाँद!


 ख़्वाबों में एक आस जगा कर मिला
रात चाँद खुश था मुस्कुरा कर मिला

गम-ए-दिल दवा बनी दीदार-ए-यार में
मसीहा हो कोई जो घर आ कर मिला

रूह सुलग रही थी मिलन की आस में
बादलों की बूंदों को वो  बरसा कर मिला

तारों की बारात टिमटिमाते रहे मगर
वो तो उनको भी तरपा तरसा कर मिला

आइना कौन उसको दिखाएगा भला
वो तो जब मिला खुद को भुला कर मिला

सुबह -ओ - शाम जलता रहा वो मगर
चाँदनी से आज खुद को सजा कर मिला

बेमज़ा थे   हर रंग इंतज़ार-ए-होली में
हर रंग ज़माने के वो दिखला कर मिला

नूर-ए-आफताब लुटाता रहा ताउम्र जो
आज सारे रश्मों को वो मिटा कर मिला

"नीलांश "

2 comments:

  1. ख़्वाबों में एक आस जगा कर मिला
    रात चाँद खुश था मुस्कुरा कर मिला.... bhut hi pyari dil ko chune vali panktiya....

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  2. नूर-ए-आफताब लुटाता रहा ताउम्र जो
    आज सारे रश्मों को वो मिटा कर मिला
    --
    बहुत उमदा ग़ज़ल!

    ReplyDelete

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