दिए से बाती को जुदा नहीं करते
दोस्त बन बनकर दगा नहीं करते
गुल के संग कांटे भी खिला करते हैं
चंद लफ़्ज़ों के लिए, गिला नहीं करते
महबूब तो दिल में रहा करते हैं
उनकी गलियों का ,पता नहीं करते
फ़रिश्ते होते हैं खुदा के बन्दे
उनसे नफरत की ,खता नहीं करते
राह में शोर न मचाया करना
लोग अब शुक्र भी, अदा नहीं करते
तू पहचान ले खुदी को शायर
खुद को युहीं , फ़िदा नहीं करते
बड़ी मुश्किल से इज्ज़त बनती है
बेखुदी में इसे ,फना नहीं करते
.......
"नीलांश निशांत "
बहुत बढ़िया गज़ल!
ReplyDeleteसभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
ओह्ह...बहुत खूब....
ReplyDeletekhubsurat aur dil ko chune vali gazal...
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