Sunday, October 27, 2019

जीवंत दीपक

जिस  प्रकार  इक  छोटा  सा  दीपक  आँखों  को  ज्योति  दे  सकता  है  पर  खुद  उसके  तले   अँधेरा  रहता  है
अथार्थ
श्रेष्ठ  परोपकार  करने  में  स्वयं  को  परे  कर  देना  परता  है
फौजी  खुद  अपने  घर  नहीं  जा  पाते  पर  हमारा घर  में  होना  सार्थक  करते  हैं

किसान  वर्षा , ताप  और  हवाओं  को  झेलते  हैं  पर हमें  अन्न  और  प्रसाद  की  कमी  नहीं  होने  देते
गुरु  स्वयं लघु  और  तपस्वी  की  भाती  जीवन  व्यतीत  करता  है ताकी   उसके  शिष्य हर  ऐश्वर्य से  परिपूर्ण  हो  जायें

मज़दूर हमारे कार्य साधने में अपना समर्पण करते हैं

माता  पिता  अपने  संतति   की चिंता  करते  हैं  और  उनकी मनोइच्छाओं  को  पूरा  करते  हैं

आईये  जीवंत  दीपकों  का  स्मरण  और  अभिवादन  करें

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को     "भइया-दोयज पर्व"  (चर्चा अंक- 3503)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. चर्चा मंच के लिए इस रचना को चुनने के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ मयंक दा

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  2. बहुत खूब नीलांश जी

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    1. आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद अलकनंदा जी

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