हम अपनी छाया का अनुसरण कर रहे हैं या यह है कि हमारी छाया हमें धक्का दे रही है, वास्तव में हम अपने अतीत से नियंत्रित होते हैं और हम पूर्व धारणा,शिकायत,शत्रुता और कभी-कभी आत्म घृणा जैसी नकारात्मक भावनाओं को विकसित करते हैं। और उस स्थिति में हम अपनी छाया का पालन कर रहे हैं। , लेकिन अगर हमारे पास एक अच्छी इच्छा है, तो हमारी छाया हमें प्रकाश की ओर धकेल देगी
गौरवशाली है ये धरती हम करते हैं इससे प्यार दिल को दिल से जोड़ना सिखाये हमारा प्यारा ये बिहार हम अलग भले हों यारों एक हमारा भारत है मिलकर हम सबको रहना है देश को इसकी जरूरत है....जय बिहार...जय भारत
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मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब
मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...
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मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...
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दलील क्या है ?,थाह ले कर देख लो ! हक में कुछ गवाह ? ले कर देख लो ! हो गयी है राह पथरीली मगर .. राह की भी राह ,ले कर देख लो है वही पेड़ था झ...
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निशा निमंत्रण लेकर चन्दा , छत पर मेरे आया है सपनो में था खोया मैं ,उसने आकर मुझे जगाया है ठंडी ठंडी हवा चल रही ,रिमझिम...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-10-2019) को "सूखे कलम-दवात" (चर्चा अंक- 3489) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपको बहुत धन्यवाद मयंक दा
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिंतन ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
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