बादलों के डाकिये बूंदों की चिट्ठी समेटे छत से गुजरते हैं ---
मेरी जमीन पर
काँटे थे , तो बरस गये !
अब हरे घास हैं मखमली ,काँटे नहीं ,पर लौट गये बिन बरसे !
और तब बगल वाली सुँदर बगिया की तितली हैरान थी
और
अब मेरे सपनों की तरह हरे इन घासों पर मंडराती तितली
हैरान तितली का होना अनवरत और अविरत है
मेरे मन तितली
घास सपने
ये जमीन जीवन
और काँटे
कठिनाइयाँ ही तो हैं ,
कठिनाइयाँ ही तो हैं ,
पर सबसे बड़ी कठनाई इस निष्पक्ष ,निश्छल बादल के डाकिये को समझना है ,
सरल जीवन न खुशी को पहचानता है और ना ही दुःख को।
ReplyDeleteकांटो यानी कठिनाई भरा जीवन ही असली जीवन है इस प्रकार के जीवन का एक मकसद होता है जो पूरा होता है... उस पर फिर खुदा भी मेहरबान होता है।
सुंदर रचना।
यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता
मैं आपके आगमन और कीमती टिप्पणियों के लिए आभारी हूं। आप हर मायने में सच्चे हैं। धन्यवाद और सादर । नील
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