Thursday, October 31, 2019

तितली

बादलों  के  डाकिये   बूंदों  की  चिट्ठी  समेटे  छत  से  गुजरते  हैं ---

मेरी  जमीन  पर  
काँटे  थे , तो बरस  गये !

अब  हरे  घास  हैं  मखमली ,काँटे  नहीं ,पर  लौट  गये  बिन  बरसे !

और  तब बगल  वाली  सुँदर  बगिया  की  तितली हैरान  थी 
और 
अब  मेरे  सपनों  की  तरह  हरे  इन  घासों  पर  मंडराती तितली 

हैरान  तितली का होना अनवरत  और अविरत  है 

मेरे  मन  तितली 
घास सपने 
ये  जमीन  जीवन 
और  काँटे
कठिनाइयाँ   ही  तो हैं ,

पर सबसे बड़ी कठनाई इस निष्पक्ष ,निश्छल बादल के डाकिये को समझना है ,

आखिर कैसे बाँटता है ये चिट्ठियाँ ?

2 comments:

  1. सरल जीवन न खुशी को पहचानता है और ना ही दुःख को।
    कांटो यानी कठिनाई भरा जीवन ही असली जीवन है इस प्रकार के जीवन का एक मकसद होता है जो पूरा होता है... उस पर फिर खुदा भी मेहरबान होता है।
    सुंदर रचना।
    यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

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  2. मैं आपके आगमन और कीमती टिप्पणियों के लिए आभारी हूं। आप हर मायने में सच्चे हैं। धन्यवाद और सादर । नील

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