Thursday, October 17, 2019

वादों का सम्मोहन ?


प्रतिदिन हार  रहा  हूँ  खुद  को  किये  वायदों  से !

शाम  को   दश  मुखी  रावण  की  तरह  हँसते  है  मुझ पर  !!!

मैं  राम  भी  नहीं  कि  उनसे  टकरा  जाऊँ !!


सिवाय  इसके  कि  मैं  खुद  इक और  वायदा  कर  लूँ  निद्रा  मग्न  होने  से  पहले  और  दे  दूँ  फिर  उस  रावण को  इक और  वायदा रूपी  मुख   भेंट  में ?

युहीं  वो  रावण अजय  होता  जा  रहा  है 



न  जाने  अब  कोई  लक्ष्मण  मुझे  कायर  क्यूँ  नहीं  बोलता  कि  मैं  रावण से  पहले  अपने  खोखले  वायदों  से  टकराऊँ   ,क्यूँ  नहीं  वो  मेरे  मन के    चारो  ओर  समर्पण  और  कर्तव्यपरायणता  की  रेखा  खिंच  देता  है  जब मैं  मारीच रुपी वायदों की सम्मोहनी मृग की कल्पना  की  भेंट अपने अबोध  सीता रुपी मन को देकर  उससे अन्याय करने को स्वप्रेरित हो जाता हूँ और सिता का   अपहरण हो जाता है दशानन वचनों के द्वारा  !

क्यों नहीं मैं किसी भी सीता द्वारा मेरे वादों की अग्नि परीक्षा के लिए मजबूर हूं ?

क्यों नहीं किसी भी कैकेयी ने मुझे अपने वादों के शहर को छोड़ने के लिए मजबूर किया ?

किसी ने भी मेरे वादों के पैर क्यों नहीं हिलाए जो अंगद की तरह स्थिर  हैं



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