टूटे हुये शीशों को सजाओ ना , दोस्तों ,
यूँ आईनों का शहर बसाओ ना दोस्तों !
रखते हो अगर आईना तो , रखो साफ साफ,
भूल कर खुद को ही ,आओ ना दोस्तों
कागज़ों के रेत में ये हर्फ़ के हैं धूल ,
हर्फों को फिर फूल सा खिलाओ ना दोस्तों
कहते हो वाह तो हो जाती है रौनक ,
है कमी तो , आज , छुपाओ ना दोस्तों,
रूठता है अब नहीं ये "नील " भी कभी ,
ये भरम भी तोड़ के जाओ ना दोस्तों
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