Thursday, October 24, 2019

सोच

किस  पे  रखूँ  यकीं  कि  हर  कोई  कभी  खास  ही  था ,
झूठ  और  सच  है  क्या ? ,मेरा  खुदा  मेरा  विश्वास  ही  था !

मुझको  सहरा  में  बहुत  लोगों  ने  सहारा  भी  दिया ,
कई  अजनबीयों  को  किया  अपना , वो  मेरा  प्यास  ही  था !

आज  ओढ़  के   तुम  कात  रहे  हो  , वो  है  मेहनत !
ये  सूत   है  इक  सोच  , जो   शजर  का  कपास  ही  था 

उसको  खत  दे  कर  मत  तोड़  ,ए   नादाँ  काशिद ,
"नील " आयेगा  फिर  उसी  राह  पे  उसे  आस ही  था


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