तू इक सूत के जैसा है , जो ठोस ना है ,पर कोमल है
मेरे कपड़े तेरी सीरत है , मेरे चादर तेरा ही बल है !
मेरे कपड़े तेरी सीरत है , मेरे चादर तेरा ही बल है !
मेरी साँसें हैं ये काले हर्फ़ ,ये काफिया ध्यान मेरे मन का
मेरा घाटा है बेमानी शेर , गज़लों में हरदम हल है !
मेरा घाटा है बेमानी शेर , गज़लों में हरदम हल है !
तुम प्याला ले कर आये हो , खलिहानों में पानी देने ,
तुझको प्याले पे नाज़ बहुत ,उसका प्याला वो बादल है !
तुझको प्याले पे नाज़ बहुत ,उसका प्याला वो बादल है !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 21 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteइस कविता को चुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर भाव अच्छी रचना।
ReplyDeleteअच्छा है।
ReplyDeleteशानदार ।
ReplyDeleteआप सभी को बहुत - बहुत धन्यवाद
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