Monday, October 21, 2019

बादल

तू   इक  सूत   के  जैसा   है , जो  ठोस  ना  है  ,पर  कोमल है
मेरे  कपड़े   तेरी  सीरत   है  , मेरे  चादर    तेरा   ही  बल  है !

मेरी  साँसें   हैं  ये  काले  हर्फ़ ,ये काफिया ध्यान मेरे  मन  का
मेरा   घाटा   है  बेमानी  शेर , गज़लों  में  हरदम  हल   है !

तुम  प्याला  ले  कर  आये  हो , खलिहानों   में  पानी   देने ,
तुझको   प्याले   पे  नाज़   बहुत ,उसका  प्याला  वो  बादल  है !

कभी  नील  तुम्हारी  आँखें  हैं ,कभी  नील  नदी  का  तीर तेरा
कभी  नील  गगन  का  बादल  है ,कभी  "नील " तो  गोया  पागल  है !

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 21 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. इस कविता को चुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. सुंदर भाव अच्छी रचना।

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  3. आप सभी को बहुत - बहुत धन्यवाद

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